SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 148 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। को बुलवाकर बड़ीभक्तिके साथ वह अमृतफल उसे दिया। उस ब्राह्मणने राजाका दिया हुआ वह आम्रफल घर ले जाकर देवताको चढ़ाकर खा लिया और तत्काल मर गया। जब राजाने यह बात सुनी, कि वह / ब्राह्मण तो उस फलको खातेही मर गया, तब उन्हें बड़ा ही खेद हुआ। उन्होंने कहा,-"ओह ! मैं तो धर्म करने जाकर घोर ब्रह्महत्याके पापमें फँस गया। अवश्यही वह ज़हरीला फल मेरे किसी शत्रुने ही मुझे मार डालनेके अभिप्रायसे मेरे पास इस तरह धोखाधड़ीसे पहुँचवा दिया होगा। इसलिये यद्यपि मैंने इस वृक्षको आपही रोपा और इस तरह इसकी रक्षा की है, तथापि इसे जहाँतक जल्द हो सके, कटवा डालना चाहिये, जिसमें बहुतसे लोग न मरने पाये। बस, फिर क्या था ? तुरतही उन्होंने पेड़ काट डालनेकी. आज्ञा दे दी। तत्काल राजाके सेवकोंने तेज़ कुल्हाड़ोंसे उस उत्तम वृक्षको अड़से काटकर पृथ्वीपर गिरा दिया। उस समय कोढ़ वगैरह रोगोंसे दुःख पानेवाले मनुष्योंने उस बिष-वृक्षके काटे जानेका हाल सुन, जीवनसे ऊबे हुए होनेके कारण सोचा, कि चलो उसी विषफलको खाकर खुशी-खुशी इस संसारसे कूच कर जायें। यही सोचकर वे लोग वहाँ आये। उनमेंसे किसीने उस वृक्षका पका हुआ, किसीने अधपका फल-जोही जिसके हाथ आया, वही खा गया। किसीने पत्तेही चबाये, किसीके मोजरें ही मयस्सर हुई। इसका परिणाम यह हुआ, कि सबके सब निरोग और अद्वितीय स्वरूपवाले हो गये। इस प्रकार उन कुष्ठादि रोगोंसे पीड़ित व्यक्तियोंके दिव्यरूपवाले हो जानेका हाल सुन,राजाको बड़ा विस्मय हुआ। उन्होंने सोचा,-"ऐं ! यह तो बड़ेही अचम्भेकी बात है, कि सामान्य मनुष्य, तो इसके फल खाकर लाभान्वित हुए और बेचारा घेद-वेदाङमें निपुण ब्राह्मण मुफ्तही मारा गया।" . ऐसा विचार कर राजाने रखवालोंको बुलाकर पूछा,-"तुम लोग। उस दिन वह फल पेड़परसे तोड़ लाये थे या ज़मीनपर गिरा देखकर उठा लाये थे ?" उन्होंने सच-सच बयान कर दिया। यह सुन, राजाने P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy