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________________ तृतीय प्रस्ताव / 125 लोगोंने जब यह बात राजासे कही, तब उन्होंने एक जादू-टोनेके जाननेवाले वैद्यको बुलाकर इसका उपाय पूछा। यह सुन, वैद्यने कहा, "हे राजन् ! उस चोरने इन स्त्रियों को कोई ऐसा चूर्ण खिला दिया है, जिससे ये परवश हो गयी हैं। यदि आपकी आज्ञा हो, तो मैं भी इन्हें कोई वर्ण खिला दूं, जिससे ये फिर अपनी असली हालतमें आ जायें।” राजाने हुक्म दे दिया। वैद्यने उन स्त्रियोंको अपना चूर्ण खिलाकर उनपरसे जादूका असर उतार डाला ; परन्तु उनमेंसे एक स्त्री ज्यों-की त्यों रही। इसपर राजाने फिर उसी वैद्यको बुलाकर इसका कारण पूछा। वैद्यने कहा,-" हे राजन् ! उस चोरके दिये हुए चूर्णका प्रभाव किसी-किसी स्त्रीकी त्वचा तक और किसी-किसीके मांस-रुधिर तक ही पहुँचा था ; ‘पर इस स्त्रीकी अस्थि-मजामें भी वह प्रवेश कर गया है, इसीलिये उन पर तो मेरी दवा कारगर हुई ; परन्तु इसपर उसका कुछ असर नहीं हो सकता।” यह सुन, राजाने पूछा,-" तो क्या इसके लिये कोई और उपाय नहीं है ?" वैद्यने कहा,-"यदि उसी चोरकी हड्डी घिसकर इसे पिला दी जाये, तो यह भी अपने स्वभावको प्राप्त हो जायेगी, अन्यथा नहीं।" यह सुन, राजाने वैसाही किया। वह स्त्री भी जादूके प्रभावसे छुटकारा पा गयी। सब लोग सुखी हो गये, राजा नरसिंह भी बड़े सुखसे राज्य करने लगे। . इसके बाद फिर वही जयन्धर आचार्य वहाँ पधारे। इन्हींसे राजाके पिता जितशत्रुने दीक्षा ली थी। उनके आगमनका.समाचार सुनकर राजा नरसिंह उनकी वन्दना करने गये और उनसे धर्म-कथा श्रवण कर, प्रतिबोध प्राप्त कर, अपने पुत्र गुणसागरको राज्यपर बैठाया और वैराग्य-युक्त होकर चारित्र ग्रहण कर लिया। इसके बाद उग्र तपल्या कर, कर्मका क्षय करनेके अनन्तर राजर्षि नरसिंहने मोक्ष-पदवी प्राप्त कर ली। नरसिंह राजर्षि-कथा समाप्त / . .. .... P.P.AC. Gunratnasure M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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