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________________ 124 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। और साथही बोली,-"तुम थोड़ी देर इसी पलङ्ग पर बैठो। यहाँका सब कुछ तुम्हारा ही है। मेरा पापी भाई अपने पापोंके फलसे ही इस तरह मारा गया।” यह कह, उस चोरकी बहनने उस भूगर्भ-मन्दिरका / द्वार बन्द कर दिया। उस समय राजाने चोरकी बहनको बार-बार अपनी ओर कनखियोंसे देख, सशङ्कित होकर सोचा,—“इस दुष्टाका विश्वास करना ठीक नहीं। बिना विचारे एकदम इसके पलङ्ग पर बैठना तो और भी अनुचित है। हो सकता है, कि इसमें भी कोई कपट हो।" ऐसा विचार कर वे शय्याके ऊपर तकिया रखकर दीवेकी ऊँजियालीसे हट कर अँधेरेमें खड़े हो रहे। इतने में यह कल-काँटोंपर खड़ी हुई शय्या रस्सी खींचतेही टूट गयी और उसपर रखा हुआ तकिया शय्यांके नीचेवाले गहरे अन्धकूपमें गिर पड़ा। राजा सारी कपट रचना समझ गये। चोरकी बहनने तकियेके कुएं में गिरनेकी आवाज़ सुनकर अपने मनमें यही समझा, कि शय्यापर बैठा हुआ पुरुष कुएँ में गिर पड़ा। यही सोचकर उसने हँसते और ताली पीटते हुए कहा,"बहुत ठीक हुआ। अपने भाईकी जान लेनेवालेको मैंने भी जहन्नुम भेज दिया।" यह सुन, राजाने उसके पीछेसे आकर उसके बाल पकड़ लिये और कहा,-"अरी राँड़! ले इस करनीका मज़ा तू भी देख और अपने भाईके पास जा / " यह सुनते ही वह रोने-गिड़"गिड़ाने लगी। राजाको दया आ गयी। उन्होंने उसे छोड़ दिया। इसके बाद उस पातालगृहका द्वार खोल कर राजा अपने घर 'चले आये। प्रातःकाल राजाने नगर भरके लोगोंको वहाँ ले जाकर जो-जो चीजें जिसकी थीं, उसे दे डालीं और उस पाताल-गृहको एकदम ढहा दिया। 'जिन स्त्रियोंको वह चोर हरण करके वहाँ ले गया था, उन्हें भी लोग .. राजाके हुक्मसे अपने-अपने घर ले गये। परन्तु उन स्त्रियों पर उस चोरने जादू कर रखा था, इसलिये उनका मन अपने घर पर नहीं लगता था और वे चंचल हो-होकर उसी स्थानपर चली जाया करती थीं। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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