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________________ 126 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। . इस प्रकारकी कथा सुनाकर साधु सुव्रतने श्रीदत्तासे कहा,-"हे भद्रे ! जिस प्रकार उस योगी-वेश-धारी चोरके चूर्णके प्रभावसे उस स्त्रीकी अस्थि-मजा भी वासित हो गयी थी, उसी प्रकार तुम भी कल्पवृक्ष तथा चिन्तामणिकी भाँति वाञ्छित फलके देनेवाले तथा जिसका फल तुमने साक्षात् देख लिया है, उसी धर्मसे अपनी आत्माको वासित कर लो और अपने चित्तमें धर्मके ऊपर निश्चल प्रीति उत्पन्न कर लो।" यह सुन, श्रीदत्ताने उन्हीं मुनिवरसे शुद्ध समकित सहित श्रावक-धर्म ले लिया। मुनि अन्यत्र विहार करने चले गये। श्रीदत्ता घर जाकर विधिपूर्वक धर्मका पालन करने लगी। ___एक दिन कर्म-परिणामके प्रभावसे श्रीदत्ताके मनमें यह सन्देह हुआ, कि मैं इतने प्रयत्नसे जिनधर्मका पालन कर रही हूँ; पर न मालूम, इसका कोई फल होगा या नहीं ? इसी प्रकार सन्देह करती हुई एक दिन श्रीदत्ता आयु पूरी होनेपर मृत्युको प्राप्त हुई। इसके बाद वह कहाँ उत्पन्न हुई, उसका हाल सुनो, "इसी विजयमें वैताढ्य-पर्वतके ऊपर सुरमन्दिर नामक नगरमें कनक पूज्य नामके राजा राज्य करते थे। उनकी स्त्रीका नाम वायुवेगा था। उनके कीर्तिधर नामका एक पुत्र भी था। वही मैं हूँ। मेरी स्त्रीका नाम अनल-वेगा था। उसने हस्ती, कुम्भ और वृषभ-ये तीन स्वप्न देखकर दमितारि नामक पुत्र प्रसव किया। वह प्रतिवासुदेव हुआ। जब दमितारि युवावस्थाको प्राप्त हुआ, तब मैंने उसका विवाह कितनीही कन्याओंके साथ कर दिया। इसके बाद मैंने उसे राज्यपर बैठाकर चारित्र ग्रहण किया। दमितारिकी एक स्त्रीका नाम मदिरा था। उसीके गर्भसे श्रीदत्ताके जीवका अवतार हुआ। वही तुम कनकश्री कहला रही हो। पूर्व भवमें तुमने एक बार धर्मके विषयमें सन्देह किया / था। इसीलिये तुम्हें बन्धु-वियोगादिक दु:ख प्राप्त हुए।" इस प्रकार कनकनीने जब अपने पितामह मुनिके मुंहसे अपने पूर्व भषका वृत्तान्त सुना, तब उसे संसारसे वैराग्य हो गया और उसने हाथ P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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