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________________ तृतीय प्रस्ताव। सोचा,-"अहा ! विधाताने सारी सुन्दरता और समस्त उपमानद्रव्योंको एकत्र करके ही इस कन्याका रूप बनाया है, ऐसा मालूम पड़ता है। इसका सारूप तो शायद दुनियाँमें दूसरा नहीं हैं।” ऐसा विचार कर उन्होंने मधुरता तथा हास्य-रससे भरे हुए मनोहर वचन और देशी भाषाओंसे मिले-जुले वाक्योंका प्रयोग कर उस कन्याको पुकारा। उस समय राजकन्या कनकश्रीने उनके वचनोंकी चतुराई देख, उनका अत्यन्त आदर किया और उन्हें आसन आदि देकर उनका भली भाँति सत्कार किया। इसके बाद उसने पूछा,-'अनन्तवीर्यका रूप कैसा है ?" यह सुन, दासीका वेश बनाये हुए अपराजितने अनन्तवीर्यके गुणोंका इस प्रकार बखान करना आरम्भ किया,-- "हे राजकुमारी! अनन्तवीर्यके चातुर्य, रूप, सौन्दर्य, गाम्भीर्य, औदार्य और धैर्य आदि गुणों का वर्णन एक जिह्वासे हो नहीं सकता। तीनों लोकमें राजा अनन्तवीर्यका सा गुणवान और रूपवान् पुरुष दूसरा नहीं 1. है। बिना भाग्य अच्छा हुए उनका नाम तो सुनाई ही नहीं देता, फिर उनके रूप-लावण्यका दर्शन करना तो कहाँसे हो सकता है ?" उनके गुणोंका ऐसा वर्णन सुनकर राजकुमारी कनकधीके रोंगटे खड़े हो गये। उनके गुण-वर्णनसे मुग्ध बनी हुई राजकुमारीको देख कर दासीका रूप धारण किये हुए अपराजितने कहा, "हे राजकुमारी ! यदि तुम्हें उनका दर्शन करनेकी अभिलाषा हो, तो मैं अभी दिखला दे सकती हूँ।" यह सुन, उसने कहा,- “यदि ऐसा हो, तो फिर क्या बात है ? यदि एक बार मैं उनका रूप देख पाऊँ, तो फिर मेरा जीवन सफल हो जाये।” उसकी यह बात सुन, उन दोनोंने अपना असली रूप प्रकट कर राजकुमारीको दिखलाया, जिसे देख, हर्षित हो राजकुमारीने कहा,"अब मैं तुम्हारी आज्ञाके अधीन हूँ।" यह सुन, अनन्तवीर्यने कहा,“यदि ऐसी बात है, तो चलो, हम अपनी नगरीमें चले। राजकुमारीने कहा,-"तुमने बहुत ही ठीक कहा; परन्तु मेरे पिता बड़े बलवान् P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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