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________________ 114 श्रोशान्तिमाथ चरित्र / / हैं, वे तुम्हें अवश्य ही हरा देंगे।" इसके उत्तरमें उन्होंने कहा,"इसके लिये तुम कुछ चिन्ता न करो। वे हमारे सामने युद्ध में क्षणभर भी न ठहर सकेंगे।" उनके ऐसे वचन सुनकर उनके स्नेह-पाशमें बँधी .. हुई तथा उनके रूप-सौन्दर्यसे मोहित राजकुमारी कनकधी उनके साथ जानेको तैयार हो गयी। इसके बाद राजा अनन्तवीर्यने अपनी विद्याके प्रभावसे विमान रच कर, उसी पर आरूढ़ हो, आकाशमार्गसे जाते-जाते सभामें बैठे हुए राजा दमितारि और उनके सब सभासदोंको सुना-सुना कर कहा,“हे मन्त्रियो ! सेनापतियो! और सामन्तो! सुनो- देखो, मैं तुम्हारे स्वामीकी पुत्री कनकधीको हरणकर अपने साथ लिये जा रहा हूँ / कहीं तुम पीछे यह न कह देना, कि हमें पहलेसे ख़बर नहीं थी।" ऐसा कहते हुए राजा अनन्तवीर्य अपने भाईके साथ उस कन्यारत्नको लिये हुए आकाशकी राह चले गये / राजा दमितारिने उनकी बात सुन, अत्यन्त क्रोधित हो, आक्रोशके साथ कहा, "हे वीरो! इस दुष्टको जल्दी गिरफ्तार कर लो।अभी पकड़ लो।" इसप्रकार अपने स्कामीकी बात सुन, विद्याधरोंने बड़े जोरसे ललकारा,- "अरे दुरात्मा! ठहर जा। तू हमारे स्वामीकी पुत्रीको कहाँ लिये जा रहा है ? " यह कहते हुए वे शस्त्र धारण किये उनके पीछे दौड़े। उनको इसप्रकार अपने पीछे-पीछे आते देख, राजा अनन्तवीर्यने उन्हें उसी तरह क्षण भरमें तितर-वितर कर डाला, जैसे हवा तृणोंके समूहको बात-की-बातमें उड़ा ले जाती है / अपने सैनिकोंको हारकर लौटा हुआ जानकर राजा दमितारि स्वयं राजा अनन्तवीर्य की ओर चले / मार्गमें जाते-जाते जब राजा अनन्तवीर्यकी दृष्टि राजा दमितारि पर पड़ी, तब वे थोड़ी देरके लिये विमानको खड़ा करके उनकी सेनाको देखने लगे। उन्होंने देखा, 7 कि उस सैन्यके समूहमें कल्पान्तकालके समुद्रकी तरह फैले हुए हाथी, घोड़े और पैदल सिपाहियों की कतारें लगी हैं और एनका विकट शब्द आकाशको गुंजा रहा है। वह सैन्य देखकर ज्योंही अनन्तवीर्य युद्ध Jun Gun Aaradnak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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