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________________ স্বনিরনাথ বনি। इस प्रकार विचार करते हुए मित्रानन्दको कोतवालक सेवकोंने निरपराधही बड़के पेड़ों लटका कर फाँसी दे दी, जिससे वह मृत्युको प्राप्त हो गया। तदनन्तर एक दिन ग्वालोंके लड़के गिल्ली-डण्डा खेलते हुए वहाँ आ पहुंचे और पूर्व कर्मके योगसे उनकी गिल्ली तुम्हारे मित्रके मुखमें चली गयी।” __इस प्रकार गुरु महाराजके मुखसे मित्रका वृत्तान्त श्रवण कर, उसके गुणोंका स्मरण करते हुए राजा अमरदत्त बड़े ज़ोर-ज़ोरसे सिसकने लगे और रत्नमञ्जरी देवी भी उसके गुणोंको याद करके बड़ी दुःखित हुई। उन दोनोंको विलाप करते देखकर गुरुने कहा, - “दुःख छोड़ कर संसारके स्वरूपकी चिन्ता करो। इस चार प्रकारकी गतिवाले संसारमें प्राणियोंको वास्तविक सुख तो लेशमात्र नहीं होता और दुःख बराबर ही मिलता रहता है। संसारमें ऐसा कोई जीव नहीं, जिसे मरणकी वेदना न सहन करनी पड़ी हो। चक्रवर्ती और वासुदेवके से महापुरुषोंको भी मृत्युने नहीं छोड़ा। इसलिये हे राजन् ! शोक छोड़ो / और धर्म-कर्ममें लग जाओ, जिसमें फिर इस तरहका दुःख न हो।" राजाने फिर पूछा, -- "हे भगवन् ! मैं धर्म करूँगा ; पर आप यह तो बतलाइये, कि मित्रानन्द मरकर कहाँ पैदा हुआ है।" सूरिने कहा,"हे राजन्! तुम्हारी इस रानीकी कोखमें मित्रानन्दका जीव पुत्ररूपसे आया है ; क्योंकि उसने मरते समय इसी तरहकी चिन्ता की थी। समय पूरा होने पर वह पुत्र संसारमें उत्पन्न होगा। उसका नाम कमलगुप्त रखना / वह पहले कुमार-पदवी पाकर फिर राजा होगा।" __ यह सुन, राजाने पूछा,- "हे महात्मा ! मित्रानन्दकी बिना किसी अपराधके ही चोरकी तरह मृत्यु क्यों हुई ? रत्नमञ्जरी रानीको महामारी कलङ्क क्यों लगा ? मुझे वाल्यावस्थासे ही बन्धु-वियोग क्यों / अनुभव करना पड़ा ? और हम दोनोंमें इतना अधिक स्नेह होने का क्या कारण है ?" राजाके ये प्रश्न सुन, मुनिने अपने झानके द्वारा उन बातोंको P.P.AC.Gunratnasuri M... Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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