________________ तृतीय प्रस्ताव। परदेशको चले जा रहे थे। जाते-जाते वे उज्जयिनी नगरके बाहर बागीचे में रातको टिक रहे / आधी रातके समय वन्धन कुछ शिथिल होनेके कारण मित्रानन्दने उससे शीघ्र छुटकारा पा लिया और भागते-भागते नगर की मोरीकी राहसे नगरमें प्रवेश किया। उस समय उस नगरीमें चोरोंका बड़ा उपद्रव जारी था; इसलिये चोरोंका दमन करनेके निमित्त राजाने कोतवाल पर कड़ी ताकीद कर रखी थी। दैवयोगसे स्वयं कोतवालने ही मित्रानन्दको इस प्रकार चोरोंकी तरह शहरमें घुसते देख लिया। अतएव उसने तुम्हारे मित्रकी मुश्के कसवा कर, बेंतों और घूसोसे उसकी पूरी तरह मरम्मत करा, अपने सेवकोंके हाथमें वध करनेके लिये सौंप दिया और कहा,-"इसे क्षिप्रा-नदीके तीरपर ले जाकर बड़के पेड़से लटकाकर मार डालो, जिसमें औरोंकी आँखे खुल जायें।" सेवकोंके साथ जाते हुए तुम्हारे मित्रने विचार किया,-"उस दिन . मुर्देने जो बात कही थी, वह आज सच निकली। शास्त्र में कहा है, कि यत्र वा तत्र वा यातु, यद्वा तद्वा करोत्वसौ। तथापि मुच्यते प्राणी, न पूर्वकृतकर्मणा // 1 // विभवो निर्धनत्वं च, बन्धनं मरणं तथा। येन यत्र यदा लभ्यं, तस्य तत्तत्तदा भवेत् // 2 // याति दूरमसौ जीवोऽपायस्थानाद्भयगतः। तत्रैवानीयते भूयो ऽभिनवप्रौढ़कर्मणा // 3 // अर्थात् 'प्राणी चाहे जहाँ जाये या जो कुछ करे, परन्तु पूर्व में किये हुए कर्मसे उसका छुटकारा होना असम्भव है / वैभव, निर्धनता, बन्धन और मरण-ये चारों चीजें जिस प्राणीको,जिस स्थान पर और जिस समय मिलने वाली होती हैं, उसको, उसी स्थान पर और उसी समय प्राप्त हुआ करती हैं। दुःखके स्थानसे डरकर प्राणी चाहे जितनी दूर भागजाये ; परन्तु उदित कर्मों के प्रभावसें वह फिर वहीं श्रा जाता है।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust