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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। संसारमें हमारे इन गुरु महाराजका ज्ञान बड़ा ही अद्भुत है। इन्होंने इस सेठकी लड़कीके पूर्व जन्मकी बात आँखों देखी बातकी तरह साफ. साफ बतला दी। ऐसा विचार कर राजाने गुरुसे पूछा, “हे भगवन् ! कृपाकर मेरे प्राणप्रिय मित्र मित्रानन्दका समाचार मुझे सुनाइये।" यह सुन, गुरुने कहा,__. “हे राजन् ! तुम्हारा वह मित्र तुम्हारे पाससे चलकर क्रमशः जलदुर्गका उलङ्घन कर, स्थल दुर्गमें गया। वहीं अरण्यमें किसी पर्वतसे जहाँ नदी झरतो थी, वहीं तुम्हारा मित्र अपने सब साथियों समेत भोजन करने बैठा। सब सेवक भी भोजन करने लगे। इसी समय अकस्मात् भीलोंने उन पर धावा कर दिया और उन प्रचण्ड भीलोंके सामने सब वीर परास्त हो गये। यह हाल देख, डरके मारे मित्रानन्द अकेला भाग गया। उसके सेवकोंमेंसे भी कुछ लोग भाग गये और कुछ मरकर वहीं खेत रहे। जो भागे, वे शर्मके मारे फिर नहीं लौटे और जो मरे, वे वहीं पड़े रहे। उधर तुम्हारा मित्र भागता-भागता जङ्गलमें एक जगह सरोवर देख, उसका जल पी, एक बड़के पेड़के नीचे सो रहा, इतनेमें उस. पेड़के कोटरमैंसे निकलकर एक काले नागने उसे काट खाया। थोड़ी ही देर में कोई तपस्वी यहाँ आया। उसने तुम्हारे मित्रकी वह अवस्था देख, जलको मन्त्रित करके उसके अंगोंपर छिड़क दिया। इससे उसकी जान लौट आयी। तब योगीने पूछा,"हे भाई ! तुम अकेले कहाँ जा रहे हो ?" इस पर उसने अपनी रामकहानी ज्योंकी त्यों कह सुनायी। सुनकर तपस्वी अपने स्थानको चले गये। मित्रानन्दने सोचा, –“यह देखो, मैं मृत्युका कारण उपस्थित हो जानेपर भी नहीं मरा और झूठमूठ हठ करके मित्रका भी साथ छोड़ आया। अच्छा, चलो, मित्रके ही पास चलूं।" ऐसा विचार / कर वह तुम्हारे पास आने लगा। रास्तेमें उसे चोरोंने पकड़ लिया और उसको अपने गाँवमें ले गये। इसके बाद उन्होंने उसको गुलामोंका व्यापार करने वालोंके हाथ बेच दिया / वे व्यापारी पारसकुल नामक P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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