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________________ ANAN तृतीय प्रस्तावं। मालूम कर कहा,- “हे राजन् ! सुनो-इस भवसे तीन भव पहले तुम क्षेमङ्कर नामके एक कृषक थे। तुम्हारी पत्नीका नाम सत्यश्री था। तुम्हारे यहाँ चण्डसेन नामका एक नौकर था / वह नौकर अपने स्वामी पर बड़ी भक्ति तथा प्रीति रखता और साथही बड़ा विनयी था। एक दिन उस नौकरने अपने खेतमें काम करते हुए पास वाले किसी खेतमें एक मुसाफ़िरको अनाजकी बालें तोड़ते देखा। यह देख तुम्हारे उस नौकरने कहा,-"रहो, मैं इसी चोरको पकड़ कर वृक्षसे लटकाये देता हूँ।" यह सुनकर भी उस क्षेत्रके स्वामीने उसे कुछ नहीं कहा। यह देख, उस मुसाफ़िरने, उस नौकरकी बातोंसे मन-ही-मन दुःखित होकर विचार किया,--"खेतका मालिक तो कुछ बोलता ही नहीं और यह पापी दूसरे खेतमें रहता हुआ भी कैसे कठोर वचन बोल रहा है ?" ऐसा विचार करता हुआ वह अपने घर चला गया। इस प्रकार उस कर्म करने कठोर वचन बोलकर दुःखदायी कर्मका उपार्जन किया। ____एक दिन भोजन करते समय जल्दबाज़ीके मारे उस कृषककी पुत्रवधूके गलेमें कौर अटक गया। इसपर उस कृषककी पत्नी सत्यश्रीने कहा,-" अरी, राक्षसी ! तू छोटे-छोटे कौर क्यों नहीं खाती, जिससे गलेमें न अँटके ?" इसके बाद एक दिन उस कृषकने नौकरसे कहा,-"हे भृत्य ! आज तुम्हें एक गाँवमें एक ज़रूरी कामके लिये जाना है, इस लिये तुम वहीं जानी।" इसपर उस नौकरने कहा,-"आज तो मैं अपने खजनोंसे मिलनेके लिये जाना चाहता हूँ, इसलिये आज तो नहीं जाऊँगा " यह सुन, कृषकने बिगड़ कर कहा,-"आज तो तुम्हें अपने स्वजनोंसे मिलनेके लिये नहीं जाना होगा।" यह सुनकर उस नौकरको दुःख तो ज़रूर हुआ ; पर लाचार अपने स्वजनोंसे मिलने न जाकर वहीं रह गया। दूसरे किसी दिन उस कृषकके घरपर दो मुनि भिक्षा करने आये। कृषकने अपनी स्त्रीसे कहा,-"इन मुनियोंको दान दो।" यह सुन, वह मन-ही-मन बड़ी हर्षित हुई और भाग्य-योगसे ऐसे सुपात्रों का आना हुआ, P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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