________________ तृतीय प्रस्ताव। होगयीं। इसके बाद, हे राजन् ! रातके चौथे पहरमें, दिव्य वस्त्र धारण किये, विविध आभूषणोंसे सुशोभित, देवाङ्गनाके समान रूपवती, मुक्तकेशी, भयङ्कर मुखवाली, हाथमें कत्रिका ( कत्ता) लिये भय उत्पन्न करती हुई एक स्त्री मेरे पास आकर बोली,-"ठहर जा, रे दुष्ट ! मैं अभी तुझे जहन्नुम भेजे देती हूँ।” उसे देखकर मैंने अपने मनमें विचार किया,- "हो न हो, यही महामारी है।" महाराजा ! यह विचार मनमें आते ही मैंने बायें हाथसे उसे पकड़ा और दाहिने हाथसे छुरी मारनेके लिये उठायी। इतनेमें वह मेरे हाथको मरोड़ कर भागने लगी। बस मैंने उसे भागते-न-भागते उसकी दाहिनी जाँघमें छूरीसे ज़ख्म कर दिया और इसी बैंचातानीमें उसके हाथका कड़ा मेरे हाथमें चला आया। इसी समय सूर्योदय हो आया।” उसकी ऐसी आश्चर्य-भरी कहानी सुनकर राजाने कहा, "हे वीर पुरुष! तुमने उस महामारीके हाथसे जो कड़ लिया, वह मुझे दिखलाओ।” यह सुनतेही उसने झटपट अपने दुपट्टेके छोरमें बँधा हुआ वह कड़ निकाल कर राजाके हाथमें दे दिया। उस कड़े पर अपना नाम देख, राजाने सोचा,- “ऐं ! तो क्या मेरी पुत्री ही महामारी है ? यह गहना तो उसीका है।" ऐसा विचार मनमें आतेही राजा शौचादिकके बहाने उठे और कन्याके महलोंमें चले आये। वहाँ पहुँच कर उन्होंने देखा, कि उनकी कन्या सोयी हुई है। उसका दाहिना हाथ खाली है, उसमें कड़ा नहीं है। साथही उन्होंने उसकी जाँघमें जखमपर पट्टी बँधी हुई भी देखी। यह सब देख: कर राजाको तो ऐसा दु:ख हुआ, मानों उनके सिरपर बिजली गिर पड़ी हो। उन्होंने सोचा,-"अहा ! मेरे इस निर्मल कुलको इस दुष्टा कन्याने कलङ्कित कर दिया ! चाहे जैसे हो इसका निग्रह करता अत्यन्त आवश्यक है, नहीं तो यह सारे नगरके लोगों को मार डालेगी।" ऐसा विचार कर वे फिर सभामें लौट आये और मित्रानन्दसे बोले,"भाई ! यह तो बतलाओ, तुमने जो उस मुर्देकी रखवाली की, वह केवल साहसके ऊपर भरोसा करके की, अथवा तुम कोई मन्त्र भी PO 2 Gunratnasuri M.S. . . Jun Gun Aaradhak Trust