________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र / ......mmunow जानते हो ? उसने उत्तर दिया,- "हे महाराज ! बाप दादोंके समयसे ही मेरे घरमें तन्त्र-मन्त्र होता चला आया है। मैं मन्त्र भी जानता हूँ।" यह सून, राजाने सभासे सब लोगोंको हटाकर एकान्तमें मित्रानन्दसे में पूछा,- “भाई ! मुझे तो ऐसा मालूम पड़ता है, कि मेरी ही पुत्री महामारीका अवतार है। इसमें कोई सन्देह नहीं। इसलिये तुम अपनी मन्त्र-शक्तिसे उसे दण्ड दो।" मित्रानन्दने :काहा,-"महाराज यह बात तो अनहोनी मालूम पड़ती है। आपके कुलमें उत्पन्न कन्या, भला महामारी कैसे होगी ?" राजाने कहा,- "भाई इसमें अनहोनी कुछ भी नहीं है। क्या मेघसे पैदा हुई बिजली प्राणोंका नाश नहीं कर देती ?" मित्रानन्दने फिर कहा,-"अच्छा, महाराज ! आप कृपाकर मुझे अपनी कन्याको दिखलाइये, जिसमें मैं देखकर इसवातकी जाँच कर लूँ, कि वह मेरे द्वारा साध्य है या नहीं ?" राजाने कहा,-"जाओ तुम यहीं जाकर देख आओ।” तदनन्तर राजाके हुषमके मुताबिक वह राजकुमारीके महलमें गया, उस समय राजकुमारीकी नींद टूट गयी थी और वह जगी हुई थी। उसे आते देख, राजकुमारीने सोचा,*यह तो वही मनुष्य मालूम पड़ता है, जिसने मेरा कड़ा छोन लिया था और रीसे मेरी जंघामें घाव कर दिया था। परन्तु यह बेधड़क यहाँ चला आ रहा है, इससे तो मालूम पड़ता है,कि इसे राजाकी आशा प्राप्त हो चुकी है। ऐसा विचार कर उसने उसको बैठनेके लिये आसन दिया। ' आसन पर बैठकर उसने कहा,-"राजकुमारी! मैंने तुम्हारे ऊपर महामारी होनेका बड़ा भारी कलङ्क लगा दिया है, जिससे आज ही राजा तुमको मेरे हवाले करने वाले हैं। इसलिये यदि तुम्हारी इच्छा हो, तो मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें अपने साथ ले चलँ और अपने मित्र अमरदत्तसे मिला दूं। यदि तुम्हें यह बात नहीं पसन्द ) हो, तो कहो, मैं इतना हो जानेपर भी तुम्हारे ऊपरसे कलङ्क दूर कर यहाँसे चला जाऊँ / " * यह सुन, उसके गुणोंसे प्रसन्न बनी हुई राजकन्याने सोचा, “अहा ! यह मनुष्य मेरे ऊपर कितना प्रेम रखता