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________________ 88 amare....rand aanaar.......amrn. * श्रीशान्तिनाथ चरित्र / बात सुनी, तब एक द्वारपालके द्वारा उसे सभामें बुलवा मँगवाया। राजसभामें आतेही मित्रानन्दने राजाको प्रणाम कर फ़र्याद की,-"हे स्वामिन् ! आप जैला प्रचण्ड प्रतापशाली राजा होते हुए भी-ईश्वर सेठ- , ने मुझ परदेशीको धोखा दे दिया।" राजाने पूछा,-"उसने तुम्हारे साथ कौनसा धोखा किया ?" यह सुन मित्रानन्दने कहा, "उसने मुझे सारी रात एक मुर्देकी रखवालीके लिये भाडेपर रखा ; पर वह भाडेकी आधी रकम देकरही रह गया। आधी देनेका नामही नहीं लेता।" यह सुन, राजाने क्रोधित होकर अपने सिपाहियोंको हुक्म दिया,"तुमलोग अभी जाकर उस दुष्ट बनियेको बाँध लाओ।" राजाके इस हुक्मकी बात सुनकर ईश्वर सेठ स्वयंही रुपया लिथे हुए राजसभामें आया और उसने उस परदेशीको पाँचसौ सुनहरी मुंहरे गिनकर दे दी। इसके बाद सेठने राजासे कहा, "हे महाराज! उस समय शोकातुर होनेके कारण मैं इस परदेशीको प्रतिज्ञानुसार धन नहीं दे सका। इसके बाद तीन दिन लोकाचारमें ही बीत गये, इसी लिये रुपये अदा करने में और भी देर हो गयी।" यह कह राजाको प्रसन्न कर, वह घर चला गया। तब राजाने मित्रानन्दसे शवकी रखवालीका हाल सुनाने के लिये कहा, जिसके उत्तरमें उसने कहा,--“हे राजन् ! यदि सचमुच आपको यह बात जाननेका कौतूहल हों, तो सावधान होकर सुनिये। धनके लोभसे शवकी रखवाली करना स्वीकार कर, मैं / हाथमें छूरी लिये, रातभर उसी मुर्देके पास बिना सोये ही बैठा रहा। रातके पहले पहरमें बड़े भयङ्कर सियारों की बोली सुनाई दी और तत्काल ही मेरे चारों ओर पीले रोंगटेवाले सियार जमा हो गये ; पर इससे मुझे ज़रा भी भय नहीं मालूम हुआ। इसके बाद दूसरे पहरमें - काले-काले और अतिशय भयङ्कर राक्षस प्रकट होकर 'किल-किल' शब्द करने लगे। पर ये भी मेरे सत्त्वके प्रभावसे नष्ट हो गये। तीसरे - पहरमें “अरे दास ! तू कहाँ जायेगा ?" यह पूछती और हाथमें शस्त्र लिये हुई शाकिनियाँ दिखलाई पड़ी। वे भी मेरे धर्मके आगे नष्ट . . 'P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak irust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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