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________________ तृतीय प्रस्ताव। . . -~vurvvvvvvvvwwvvvvvvvvvvwww. ~ - ~ Aammar हो, जिस मनुष्यने यह फन्द-फरेब रचा है, उसे आँखों देख लेना ज़रूरी है।" ऐसा विचार कर, उसने उस बुढ़ियासे कहा,-"अच्छा, जो आदमी मेरे प्यारेका संदेसा ले आया है, उसे आज खिड़कीकी राह मेरे पास ले आओ।" यह सुन, बुढ़िया बड़ी प्रसन्न हुई और मित्रानन्दसे आकर सब हाल कह सुनाया। इससे मित्रानन्दको भी बड़ा आनन्द हुआ। रातके समय बुढ़िया मित्रानन्दको राजमहलके पास ले जाकार बोली,-" भद्र ! यह सात किलोंसे घिरा हुआ राजमहल है। इसीके अन्दर राजकुमारीका कमरा है। यदि तुममें ऐसी शक्ति हो, तो इसके भीतर चले जाओ। यह सुन, मित्रानन्दने उस बुढ़ियाको चले जानेकी आज्ञा दे दी और आप बन्दरकी तरह उछल कर सातों किले तड़प कर राजमहलके भीतर प्रवेश किया। उसको इस प्रकार सात किले लाँघकर जाते देख, उस कुट्टिनीने अपने मनमें विचार किया, "यह तो कोई बड़ा ही वीर पुरुष मालूम पड़ता है। इसके पराक्रमका तो कोई पार-वार ही नहीं है।" ऐसा ही विचार करती हुई वह अपने घर चली आयी। इधर ज्योंही मित्रानन्द राजमहल में राजकुमारीके महलपर चढ़ा, त्यो ही उसकी यह अनुपम वीरता देख, आश्चर्यमें पड़ी हुई राजकुमारी नींदका बहाना किये पड़ रही। उस वीर पुरुषने उसे सोयी हुई देख, उसके हाथसे राजाके नामके चिह्नले अङ्कित कड़ा निकाल लिया और उसकी दाहिनी जाँघमें छुरीले त्रिशूल का निशान बनाकर झटपट राजमहलसे निकलकर, एक देवमन्दिर में जा, सो रहा। उसके चले जानेपर राजकुमारीने सोचा,-"यह विचित्र चरित्र देखकर तो यह कोई सामान्य मनुष्य नहीं मालूम पड़ता। यह मैंने बड़ी भारी मूर्खता की, जो उससे बोली तक नहीं।” इसी तरहके विचारमें डूबी हुई राजकुमारी रातके पिछले पहर निद्राकी गोदमें पड़ गयी। . प्रातःकाल होतेही वह वीर पुरुष ( मित्रानन्द ) राजमन्दिरके द्वारपर जाकर ज़ोर ज़ोरसे पुकार कर कहने लगा,-" अरे बाबा ! मेरे ऊपर बड़ा भारी अन्याय हो गया-बहुत बड़ा अन्याय !" राजाने जब यह P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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