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________________ . श्रीशान्तिनाथ चरित्र / अम्मासे जाकर कह सुनायी। सुन कर, वह बोली,-"वह जैसा करे, वैसा करने दे और युक्तिपूर्वक उसकी सेवा बजा।" वेश्याने वैसा ही किया। दूसरी रात भी मित्रानन्दने इसी तरह बिता दी / यह सुन कर उस कुटिनीने क्रोधके साथ उसकी दिल्लगी उड़ाते हुए कहा,“वाह साहब ! मेरी यह लड़की राजकुमारोंके भी हाथ आनी मुश्किल है और तुम इस प्रकार इसकी उपेक्षा कर रहे हो, इसका क्या कारण है ?" यह सुन, मित्रानन्दने कहा,-"माता ! समय आनेपर मैं सब कुछ ठीकठिकानेके साथ कर दूंगा ; पर पहले यह तो बतलाओ, तुम्हारा राजमहलमें जाना-आना होता है या नहीं ?" वह बोली,-"मेरी यह पुत्री राजाके यहाँ चँवर डुलानेपर नौकर है, इसीसे मैं भी जब चाहूँ, तभी-रात हो या दिन सब समय-राजमहलमें आ-जा सकती हूँ। मेरे जाने-आनेमें कोई रोक-थाम नहीं होनेकी।" यह सुन, मित्रानन्दने कहा, "हे माता ! तब तो तुम राजकुमारी रत्नमञ्जरीको अवश्यही पहचानती होगी ?" वह बोली,-" वह तो मेरी पुत्रीकी सखा ही है।" मित्रानन्दने कहा,"तब तो बुआ ! तुम राजकुपारीसे जाकर यह कहो,कि हे सुन्दरी! लोगों के मुँहसे जिस अमरदत्तके गुणोंका बखान सुनकर तुमने जिसपर प्रीति करनी आरम्भ की और जिसे पत्र लिख भेजा था, उसी अमरदत्तका मित्र यहाँ आया हुआ है।” वेश्याकी माँने यह बात स्वीकार कर ली और उसका सन्देसा लिये हुई राजकुमारीके पास आयी। राजकुमारीने कहा,-"बुआ ! आओ, कोई नयी बात सुनाओ।" उसने कहा,-"हे राजकुमारी! आज मैं तुम्हारे पास तुम्हारे प्यारेका सँदेसा लेकर आयी हूँ।" यह सुन, आश्चर्यमें पड़कर राजकुमारीने कहा,--“ मेरा प्यारा कौन है ?" इसके उत्तरमें उस बुढ़ियाने मित्रानन्दकी कही हुई सब बातें कह सुनायीं / सुनकर राजकुमारीने अपने मन में विचार किया,-"आजतक तो इस रूप-रंगका कोई पुरुष मेरा वल्लभ नहीं हुआ ; न मैंने किसीको कभी पत्र लिखा। मुझे अमरदत्तका नामतक नहीं मालूम। यह . सब किसी धूर्सकी चालबाज़ी मालूम पड़ती है। तो भी चाहे जो कुछ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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