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________________ तृतीय प्रस्ताव। आकर उसे श्मसानमें ले जाकर उसका अग्निसंस्कार किया। मित्रानन्दने बाकीका धन मांगा, तो ईश्वर सेठ साफ़ .मना कर गया। तब मित्रानन्दने कहा,-“ अच्छी बात है, यदि यहाँके राजा महासेन न्यायी होंगे, तो मुझे मेरा धन अवश्य ही मिल जायेगा।" यह कह, वह बाज़ार में चला गया। वहाँ उसने सौ मुहरें खर्च कर उत्तमोत्तम वस्त्र ख़रीदे और बढ़िया वेश बनाये हुए वसन्ततिलका नामकी वेश्याके घर पहुँचा। उसे देखतेही वह उठ खड़ी हुई और उसका आदर-सत्कार करने लगी। उसी समय मित्रानन्दने उसे चार सौ मुहरें दे डाली। उसकी ऐसी बढ़ी-चढ़ी उदारता देख, वसन्ततिलकाकी मां बड़ीही हर्षित हुई और अपनी बेटीसे जाकर बोली,-"देखना, तू इस पुरुषको भली . भांति अपने वशमें करना। क्योंकि उसने एक मुश्त इतना धन दे डाला है अधिक क्या कहूँ ? यह तो कल्पवृक्षही मालूम पड़ता है।” यह कह,. उसने स्वयंही मित्रानन्दको नहलाया-धुलाया। इसके बाद सायंकालके समय उत्तमोत्तम शृङ्गारसे सजी हुई, रूप-लक्ष्मीके कारण देवाङ्गनाके समान बनी हुई, विषय-लालसासे मतवाली बनी हुई वसन्ततिलका मित्रानन्दके पास अपूर्व शय्याके ऊपर चली आयी और हाव-भाव दिखलाती हुई मधुर वचन बोलने लगी / उस समय मित्रानन्दने अपने मन में विचार किया,–“विषय-भोगके लोभमें पड़े हुए प्राणियोंकी कार्य-सिद्धि नहीं होती, इसलिथे. मुझे इस लालचमें नहीं पड़ना चाहिये।" यही सोच कर उसने उस वेश्यासे कहा,-"सुन्दरी! मुझे थोड़ी देर ध्यान करना है, इस लिये एक चौकी ले आओ।" वह तत्काल एक सोनेकी चौकी . ले आयी, जिसपर मित्रानन्द पद्मासन मारे, वस्त्रसे अपना सारा शरीर ढाके, ढोंग बनाये बैठ रहा। इसी तरह रातका पहला पहर बीत गया। __ यह देख, वेश्याने उससे विषय-भोगकी प्रार्थना की ; परन्तु वह कुछ भी नहीं बोला, योगीकी तरह मौन साधे ध्यानमग्न हो, बैठा रहा। इसी प्रकार उसने ध्यानमें ही आधी रात बिता दी। प्रातःकाल होतेही घह . उठकर शौचादिके लिये गया। वेश्याने रातकी यह सारी कथा अपनी P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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