________________ विक्रम चरित्र 34 विजयदेव राजा का दूत आया है, और द्वार पर खड़ा है यह आपके दर्शन करना चाहता है' राजा ने कहा 'उसे सभा में ले आओ ! बाद में उस राजदूत को द्वारपाल राज सभा में महाराज के पास ले आया। राजा ने उससे पूछा कि 'तुम यहां कहां से भाये हो और आने का क्या प्रयोजन है ? तब दूत कहने लगा कि हे राजन! पूर्व दिशा में 'लक्ष्मीवती' नाम की एक सुशोभित नगरी है, वहां विजयदेव नाम का परम धार्मिक राजा राज्य करता है उनकी प्रीतिमती नाम की पटराणी है वह सतियों में शिरोमणी है। उनको सोम भीम धन और अर्जुन नाम के चार पुत्र हुर तथा हसी और सारसी नाम की दो कन्याओं को जन्म दिया क्रमशः बड़े प्यार से उनका पालन पोषण किया। एक दिन राजा रानी ने सोचा कि आहार निद्रा भय और मैथुन यह सब मनुष्यों को और पशुओं को समान ही है। मनुष्यों को सिर्फ ज्ञान ही विशेष है / ज्ञान रहित मनुष्य पशु के समान ही हैं इसीलिए विजयदेव महाराजा ने अपने प्यारे पुत्रों व पुत्रियों को विद्ववान पंडितों के द्वारा अच्छी तरह से शिक्षित किये ! वे चारों पुत्र और दोनों कन्यायें सब शास्त्रों में पारंगत और परम धार्मिक हुए। . चारों राजपुत्र अस्त्र शस्त्र आदि क्षत्रियोचित और पुरुषों की बहोतर कलाओं में यथा योग्य प्रवीण हुए। और हसी व सारसी दोनों ने स्त्रियों की चौसट कलाओं का अध्ययन परिपूर्ण किया / क्रमशः वे दोनों राज कुमारी बाल्यावस्था का उल्लंघन कर