________________ साहित्य प्रेमी मुनि निरन्जनविजय संयोजित www श्री दत्त केवली मुनि की वंदनाः राजा रानी अपने परिवार सहित केवली मुनीश्वर को / प्रदक्षिणा देकर विधिपूर्वक वंदना की, और भक्ति पूर्वक स्तुति करके अपने पुत्र को गोद में लेकर मुनि भगवंत के सामने धर्म देशना सुनने के लिए बैठ गये / श्री दत्त केवली भगवान ने धर्मोपदेश देते हुए फरमाया कि “इस परिवर्तनशील संसार में प्राणी को उत्तम धर्मवान कुल में जन्म, आदर्श शीलवती स्त्री, सशक्त उत्साहित पुरुषार्थ रुपी लक्ष्मी से युक्त जीवन पवित्र आचरण वाले पुत्र और शुद्ध हृदय वाले मित्रों की प्राप्ति ये सब फल निश्चय कर के धर्म के प्रभाव से ही प्राप्त होते हैं।" और अधर्म के प्रभाव से स्वजन से विरोध भाव, नित्य रोगी रहना, मूर्खजनों से संगत, कर स्वभाव, अप्रिय वचन का उच्चार, रोषयुक्त रहना यह सब मनुष्यों को नरक गति से आने केचिन्ह 1 और जीव धर्म प्रभाव से जो स्वर्ग लोक से मनुष्य लोक में आते हैं। उनके हृदय में नित्य चार बातें जरुर रहती हैं जैसे कि-पहली दान देने की रुचि, दूसरी मधुर वाणी से बोलना, तीसरी देव पूजन की इच्छा, और चौथी सद्गुरू की सेवा 2 इत्यादि सद्बोध दायक मधुर वाणी से धर्म देशना सुनाई ! 1 "विरोधिता बन्धुजनेषु नित्यं सरोगता मूर्खजनेषु सङ्ग / क्र रस्वभावः कटुवाक् सरोषोनरस्य चिन्हें नरकागतस्य // 162 / / 8 2 स्वर्गच्युतानाभिह जीवलोके चत्वारि नित्य हृदये वसन्ति / दानप्रसंगो विमला च वाणी देवार्चनं सद्गुरुसेवन: च॥१६३।।८ * Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.