SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विक्रम चरित्र 32 नीचे तपोध्यान में लीन "श्री दत्त" नामक मुनिश्वर को इसी समय वहां पर निर्मल केवल ज्ञानक उत्पन्न हुआ है / केवल ज्ञानी मुनिश्वर के प्रभाव से आकर्षित हो देवता स्वर्ग से आकर सुवर्ण का कमल बनाकर केवल ज्ञान का उत्सव मना रहे हैं। आनन्द दायक दुन्दुभी बजा रहे हैं उसी का यह दुन्दुभीनाद सुनाई देता __ यह बात सुनकर कमल-माला पटराणी ने कहा कि-हे स्वामी ! इस समय केवल ज्ञानी महात्मा से भक्ति पूर्वक नमस्कार कर पुत्र के बोलने का उपाय पूछना चाहिए। क्योंकि केवल ज्ञानी इस संसार की भूत, भविष्य और वर्तमान की सब बातें सम्पूर्ण तरह से जानते हैं। ज जो कर्म मनुष्य कोटि जन्मों में तीव्र तपस्या करने पर भी नष्ट नहीं कर सकते, वह कम समता-भाव का आलम्बन करके क्षण भर में नष्ट कर लेते हैं, और जिस आत्मा को आत्म ज्ञान प्राप्त हो चुका है, ऐसा साधु सामायिक रूपी शलाका से- शली जो अनादि काल से जीव और कर्म का परस्पर संयोग है, उसको प थक कर देते हैं अर्थात् आत्मा के सब कर्मों को हटाकर आत्मा को निर्मल कर देता है। सामायिक रूप सूर्य की किरणों से राग-द्वेष-मोह आदि अज्ञान रूप अंधकार को नष्ट कर देने पर परम-योगीजन अपने में ही अपनी आत्मा को देखने लगते हैं, अर्थात् त्रिकाल ज्ञानी होते हैं वे अपने त्रिकाल ज्ञान से सारे जगत के दार्थों को पूर्णरुप से देख सकते हैं। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy