________________ साहित्य प्रमी मुनि निरन्जनविजय संयोजित इधर वाद्यों के शब्दों से दिशाओं को शब्दाय मान करते हुए मगध्वज राजा को आते हुए देखकर चन्द्रशेखर राजा के मन्त्रियों ने आकर उसे सूचना दी कि "हे राजन् ! यह मृगध्वज राजा सब लोगों का नाश करने वाला है इसलिए आप को अपनी रक्षा के लिए उपाय करना चाहिए। क्योंकि शत्रु अधिक बलवान 3. बलवानों के आगे शरदऋतु के चन्द्र के समान शांत भाव ही रखना चाहिए / उत्तम व्यक्तियों को नम्र निति से, शूर व्यक्तियों को भेद नीति से, नीच व्यक्तियों को कुछ देकर तथा तुल्य बलवालो से पराक्रम के साथ मिल जाना चाहिए ! चन्द्रशेखर का राजा के पास आगमनः तत्काल उत्पन्न बुद्धि वाला राजा चन्द्रशेखर अपने म्वरूप को गुप्त करके राजा मृगध्वज के समीप जाकर बोला कि "हे राजन ! मैंने लोगों के द्वारा आपको कहीं दूर देश गया हुआ समझ कर आपकी भक्ति भाव से प्रेरित होकर आपके ही नगर की रक्षा के लिए आया था, किन्तु आपके योद्धाओं ने इस बात को नहीं समझ कर मेरे साथ युद्ध आरम्भ कर दिया। मेरे सुभटों ॐ बलवंतं रिपुदृष्ट्वा किलात्मानं प्रगोपयेत् / बलवद्भिस्तु कर्तव्या, शरच्चन्द्र प्रकाशता // 108 // उत्तम प्रणि पातेन शूरं भेदेन योजयेत् / कि नीच मूल्य प्रदानेन, समशक्ति पराक्रम // 106 / / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust