________________ साहित्य प्रेमी मुनि निरन्जनविजय संयोजित . तब राजा ने कहा, हे शुक ! आगे क्यों नहीं चलते हो ? नगर को परसैन्य से घिरा हुआ देखनाःशुक कहने लगा कि इसमें कुछ कारण है उसे आप सुनलें / तुम्हारी चंद्रवती नामकी कुटिल स्त्री आपको कहीं दूर चले गये जान कर आपके राज्य को ग्रहण करने के लिए अपने भाई को श्रमा कर ले आई है / उसके भाई चन्द्रशेखर ने अपनी चतुरंगी सेना से आपके नगर को छल से घेर लिया है / नगर में से आपके विश्वासी वीर सरदारों ने वीरता से अब तक युद्ध किया है। तब शुक के द्वारा नगर में जाना दुष्कर समझ कर राजा अपने मन में सोचने लगा कि यह संसार वास्तव में असार है क्योंकि प्यारी स्त्री भी इस प्रकार का धोखा देती हैं। कहा भी है कि-राज्य, भोजन की वस्तु, शैया, श्रेष्ठ गृह, श्रेष्ऽ स्त्री और धन इन सब को सूना छोड़ देने पर निश्चय ही दूसरे लोग अपने अधिकार में ले लेते हैं। : जड़ बुद्धि मैंने ही बिना विचारे वेग में प्राकर नगर को छोड़ा / इसलिए यह सब दोष मेरा ही है। इसमें किसी दूसरे का दोष नहीं / क्योंकि नीतिकार ने ठीक कहा है:___ समझ सोचे बिनु कहीं पर, काम करते आप हैं। मानिये उसका बुरा फल, सब तरह संताप है। 卐 राज्यं भोज्यं च शय्याच वरमेश्म वरांगना / धनं चैतानि शून्यत्वेऽधिष्ठीयन्ते ध्र वं परैः / / 66 . .. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust