________________ विक्रम चरित्र 22 NNN - कन्या दे देना / इतना कह कर वह शुक शीघ्र ही वहां से कहीं उड़ गया। बाद में वास्तव में ही प्रातःकाल आपको मैंने देखा और तुरन्त ही अपनी कन्या देदी / इसलिये मैं आपके आने जाने का मार्ग नहीं जानता हूं। शुक के साथ राजा का अपने नगर को लौटनाः इसके बाद जब राजा चिन्ता से व्याकुल होने लगा तब ठीक उसी समय एक शुक ने आकर देव-भाषा में कहा कि हे राजन ! तुम मेरे पीछे पीछे जल्दी से चले आवो, मैं अपने भरोसे पर रहने वालों की उपेक्षा नहीं करता क्योंकि सुन्दरता सौभाग्य-शान्त-स्वभाव, सद्कुल में जन्म, शुद्ध आचरण, सब कार्यों में दक्षता, एवं जीवन भर सुयश की प्राप्ति, ये सब धर्म के प्रभाव से ही सभी प्राणियों को प्राप्त होते हैं और सद्धर्म के प्रभाव से देवता भी वश में हो जाते हैं। जैसे सूर्य से अन्धकार नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार पुण्यात्माओं के सभी विघ्न समूह नष्ट हो जाते हैं। __इसके बाद मृगध्वज महाराजा अपने मन में शुक का सुन्दर उपदेश सुनकर आश्चर्य चकित हुए। गांगलि ऋषि की अनुमति लेकर अपनी नव विवाहित स्त्री के साथ अश्व पर चढ़ कर शुक के पीछे पीछे चलने लगा; बहुत मार्ग उल्लंघन करने पर दूर से अपना नगर देखा, तब वह शुक एक वृक्ष की शाखा पर बैठ गया।. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust