________________ साहित्य प्रेमी मुनि निरज्जनविजय संभाजित इसके बाद ऋषि कन्या कमलमाला उन आपण तथा वस्त्रों आदि को पहन कर श्री जिनेश्वर प्रगु के दर्शन करने जिनालय में गई / वहां वह श्री जिनेश्वर की स्तुति करने लगी। ___"हे स्वामिन् ! आप अतुल बलशाली हैं, यह मैं जानती हूं। इसलिये मैं आपको अपने हृदय में रक्खे रहती हूँ। श्राप मेरे हृदय से क्या निकल जाटोंगे? हे स्वामिन् ! आपके दोनों चरण कमल अपार सुख के देने वाले हैं / मैं पर्वत, नगर, वन, रण, कहीं भी रहूं आपके चरण कमल मेरे हृदय में बरावर विराजमान रहें।" इस प्रकार अत्यन्त भक्ति पूर्वक श्री जिनेश्वर देव की अनेक प्रेकार स्तुति कर लेने के बाद वह कमलमाला अपने आश्रम में चली आई। - इसके बाद मृगध्वज राजा भी श्री जिनेश्वर देव को प्रणाम करके अपनी प्रिया के साथ अश्व पर चढ़ा और अपने नगर की ओर जाने के लिये गांगलि ऋषि से मार्ग पूछने लगा। तब ऋषि ने कहा कि मैं तुम्हारे नगर के मार्ग से सवथा अनजान हूँ। राजा कहने लगा कि तब आपने मुझको कन्या क्यों दी ? मुनि ने उत्तर दिया कि मैंने जब अपनी कन्या को देखा और उसके विवाह के लिये उत्सुक हुआ। तब आम के पेड़ पर बैठा हुआ एक शुक बोला कि तुम अपने मन में कन्या के बारे में जरा भी सोच न करो। प्रातःकाल में ही अश्व पर चढ़ा हुआ मृगध्वज नामक राजा को मैं ले आगा। जाने वाली AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust