________________ साहित्य प्रमी मुनि निरन्जनविजय संयोजित ~ ~ हो शीव्रता से वहां आये और राजा की स्तुति समाप्त होने पर मधुर ध्वनि से जिनेश्वर प्रभु की स्तुति करने लगे। "हे नाभी कुल भूषण ! देवेन्द्र रूपी राज हंस जिसको प्रणाम करते हैं / कल्याण रुपी लता समूह के लिए मेघ स्वरुप ! महाअज्ञान रुपी वृक्ष के लिए नदी प्रवाह स्वरूप ! आपको प्रणाम करता हूँ।" इस प्रकार भक्ति पूर्वक जिनेश्वर देव की स्तुति करके गांगलि'ऋषि राजा से पूछने लगे कि, हे राजन! मृगध्वज ! अब मेरे आश्रम को सुशोमित करो। राजा अपना नाम सुनकर अत्यत चकित हुआ और ऋषि के साथ उनके आश्रम में आया। वहां 'गांगली' ऋषि ने उनका स्वागत किया। ____ 'गागली-ऋषि' ने कहा कि "हे राजन् ! में कृताथ हो गया।" क्योंकि मनुष्यों को आप जैसे व्यक्तियों के दर्शन भाग्य से ही होता है। बाद में गागलि ऋषि श्री जिनेश्वर प्रभु की पूजा में तत्पर रहने वाली अपनी पुत्री कमल माला' को उद्यान से स्वयं ले आये / और राजा से कहने लगे कि "हे राजन् !" आप मुझ पर प्रसन्न होकर मेरी इस कन्या को स्वीकार कीजिये / इस विषोय में आप तनिक भी विचार न करें।" इस प्रकार अत्यंत आग्रह करके ऋषि ने अपनी उस सुन्दर, रूपवती, गुणवति कन्या को उत्सव पूर्वक राजा को समर्पण कर दिया। . . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust