________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 643 इधर महाराजा का पट्टहस्ती मर गया था, अतः मंत्री आदि व्यक्ति वहां बाहर के उद्यान में आकर एकत्र हुए, और उसे गाडने के लिये एक बड़ा खड्डा खुदवा रहे थे, यह जान विक्रमादित्यने उस ब्राह्मण से कहा, 'तुम मेरे शरीर की रक्षा करना, मैं इस हाथी को शीघ्र जिलाता हूँ.' . महाराजाने अपना शरीर उस ब्राहाण को सौंपा, और हाथी के शरीर में प्रवेश किया, हाथी को उसी क्षण संजीवन किया, उस से लोगोंने नगरी में स्थान स्थान पर उत्सव किया-मनाया. . उधर ब्राह्मणने अपनी देह को छोड कर जो राजा का शरीर था उस में प्रवेश किया, और नगर में जाकर मत्रियों से मिला. अन्तःपुर-रानीवास में प्रवेश कर सारा अन्तःपुर देखा.. मनियोंने जब महाराजा को आलसी, सत्वरहित और विचित्र प्रकार से बोलते सुना तो वे परस्पर विचार करने लगे, 'यह किसी प्रकार भी विक्रमादित्य महाराजा नहीं लगते.' इसी प्रकार षट्टरानी आदिने भी मन में ये ही सोचा. उधर महाराजा हाथी को जीवित करने के बाद अपने शरीर को देखने के लिये गये. वहां उन्होंने अपने शरीर को न देख कर और ब्राह्मण के शरीर को पक्षियों से भक्षण किया हा देख कर सोचने लगे, 'निश्चय ही वह ब्राहमण कृतघ्न निकला, अतः उसने मेरे शरीर में प्रवेश किया होगा. शायद उसने मेरे राज्य को भी ले लिया होगा. अब क्या होगा? यह सोचते हुआ महाराजा वन भ्रमण करने लगे. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust