________________ विक्रम चरित्र राजा बोले, 'हे योगीराज ! आप वह उत्तम विद्या इस ब्राह्मण को दीजिये, क्यों कि आप के चरण कमल के प्रतापसे मेरे पास सब कुछ हैं.' यह सुन कर योगीराज महाराजाको एकान्त में ले जा कर बोला, 'यह ब्राह्मण इस विद्या के योग्य नहीं है, क्योंकि वह कृतन और भविष्य में स्वामी को धोखा देने वाला है, अतः उसे विद्या देने से बहुत अनर्थ होगा. कहा है कि जैसे कोई थका हुआ और छाया की शोध करनेवाला हाथी वृक्ष के नीचे आश्रय लेता है, लेकिन आराम लेने के बाद वह हाथी उस पेड का नाश करता है, उसी तरह नीच व्यक्ति अपने आश्रयदाता का ही नाश करते है.' विक्रमादित्य महाराजा के अति आग्रह से उस योगीने महा राजा और ब्राह्मण को परकाय प्रदेश की विद्या दी, फिर वे दोनेांने विद्या साध कर विद्या सिद्ध की. बाद योगो को प्रणाम ( योगी को महाराजा और ब्राह्मण नमस्कार कर के वहां से करते है. चिंत्र नं: 58 ) रवाना हुए, फिरते फिरते अवन्ती नगरी के बाहर उद्यान में आये. AATE PROPMENin P.P. Ac. sunratnasuri M.S. . Jun Gun AaradhakTrust