________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित चाथी चामरधारिणीः अब चौथी चामरधारिणीने नवीन राजा विक्रमचरित्र के आदेश से महाराजा विक्रमादित्य का एक जीवन प्रसंग कहा विक्रमादित्य एक बार अपनी सभा में बैठे थे. उस समय परदेश से कोई एक ब्राह्मण फिरता हुआ आया, राजाने उसे पूछा, 'क्या तुमने पृथ्वीतल पर कोई नवीन कौतुक देखा है ?" वह ब्राह्मण बोला, 'श्रीगिरि में 'हर' नाम का एक योगीराज रहता है. वह परकाय प्रवेश की विद्या को जानता है, वह निर्मल आशयवाला है, मैंने भक्तिपूर्वक छै महिने तक उस की सतत सेवा की, तब भी उस योगीने मुझे अपनी विद्या नहीं दी. अतः आप मेरे साथ वहां आकर मुझे उस योगी के पास से वह विद्या दिलवाइये, क्यों कि जगत में फिरते मैंने सुना है कि 'आप सदा सब लोगों का उपकार करने में तत्पर रहते है.' ब्रह्मण के कहने पर उस पर कृपा करने विक्रमादित्य महाराजा उस के साथ साथ शीघ्र ही श्रीगिरि पर गये, और दोनेांने योगी को भक्तिपूर्वक नमस्कार किया. महाराजा के विनयभक्ति से योगिराज सहज में खुश हुए और बोले, 'हे नरोत्तम! मेरे पास से परकाय प्रवेश विद्याको तुम ग्रहणः करो." P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust