________________ विक्रम चरित्र महाराजा और मांत्रियों सहित सभा में वह वैतालिक महाराजा के अंतःपुर में से उस स्त्री को लेकर आया और महाराजा के प्रति बोला, 'हे राजन् ! मैंने पहले सुना था कि आप पर स्त्री से पराङ्गमुख है, तो अब थोडे जीवन के लिये ऐसा काम क्यों किया?' यह सुन कर महाराजाने अपना मुंह नीचा कर लिया और दीनता धारण की, तब वैतालिकने शीघ्र ही उस स्त्री का सहरण कर लिया, और वह बोला, 'हे राजन् ! मैंने आप के सामने यह सब इन्द्रजाल फेलाई थी, आप खेद न करें. __ इस से महाराजा उस वैतालिक पर प्रसन्न हुए. और पांडयदेश से आई हुई भेट उसे दिलवाई. वह भेट इस प्रकार थी-- आठ करोड सोनामोहरें, तिरानवें-९३ तोले मोती, मद / की गंध से लुब्ध भ्रमरों के कारण मदोन्मत पचास हाथी, लावण्यवती तथा सुदर दृष्ठिवाली सौ वारांगनाएं. यह सब पांडयदेश के राजाने दंड के रूप में जो महाराजा विक्रमादित्य को अर्पण किया था. विक्रमादित्य का इस प्रकार वृत्तान्त कह कर तीसरी चामरधारिणीने विक्रमचरित्र से कहा, 'आप उन के तुल्य कैसे हो सकते है ? सो कहिये.' इस प्रकार तीसरी चामरधारिणी का कहा हुआ वृत्तान्त समाप्त हुआ. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust