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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित - 'भोजनशाला में भोजन करने आयी. ब्राह्मणी की वह पुत्री कानी थी. अतः उसे देख कर मत्रियोंने विचार किया कि, ये आभूषण इस के कदापि नहीं हो सकते . यह सोच कर मत्रियोंने आभूषण के बारे में उसे पूछा, ‘परंतु उसने कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया, तब चाबुक आदि द्वारा उसे शिक्षा दी और पूछा, 'यह आभूषण किस के हैं ? सत्य बताओ, यदि न बतायेगी तो तुझे खूब मार पडेगी.' इस से डर कर उसने कहा, 'यह मेरी बहन रुक्मिणी के आभूषण हैं.' तब राजाने उस रुक्मिणी को बुलवाया और उस को देख कर वह राजा उसके रूप पर मोहित हो गया. उस के पिता को सन्मानित करके उत्साहपूर्वक राजाने उस से विवाह कर लिया. राजा आनंदपूर्वक समय बिताने लगा. तत्पश्चात् राजाने छल से वह कंकण अपनी पटरानी से ले लिया और नई पली को दे दिया. राजा उस में पूर्ण आसक्त हो गया. और अब वह पहली पत्नी का नाम भी . नहीं लेता. नब पहली रानीने राजा से कंकण मँगवाया तो राजाने कहा, 'दूसरे कंकण विना तुम काष्ट भक्षण करेगी, अतः उस ककण से तुम्हें क्या प्रयोजन है ?' कंकण प्राप्त करना असंभव जान कर पहली रानीने काष्ठभक्षण का निर्णय शीघ्र छोड दिया. इधर समय बीतने पर अच्छे सुंदर स्वप्न से सूचित शक्मिणीने एक पुत्र को जन्म दिया. उस समय अपने स्वजनों / का सन्मान कर के राजाने उस का बडा जन्मोत्सव मनाया. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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