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________________ 628 विक्रम चरित्र को दिया. वह दिव्य कंकण देख के पटरानीने कहा, 'हे राजन! ऐसा ही दूसरा कंकण मुझे ला कर दो.' राजा बोला, 'हे प्रिये ! मुझे एक ही कंकण मिला है.' तब पटरानी बोली, 'मुझे लगता है कि आपने दूसरा कंकण किसी दूसरी रानी को दिया है, अतः यदि आप अभी दूसरा कंकण ला कर दोगे तो ही मैं जीऊंगी नहीं तो अग्नि"प्रवेश करूंगी: कहा है कि 'वजूरलेप, मूर्ख, स्त्री, बदर, मछली, काले रंग का दाग और शराब पीनेवालों का कदाग्रह एकसा ही होता है, - अर्थात् ये अपनी पकडी बात कभी नहीं छोडते.' / राजाने राजसभा में आ कर मांत्रियों से बातचीत की, मांत्रियोंने कहा, 'हे राजन् ! ऐसा दिव्य कंकण इसी नगर में किसी के पास होना चाहिये.' यह अपनी प्रिया के कदाग्रह के कारण राजाने कंकण प्राप्त करने के लिये मनियों के साथ मंत्रणा की और नगर में एक बड़ी भोजनशाला शुरू - की, राजाने यह भी घोषणा करवाई, 'जो स्त्री पुरुष अपने अपने आभूषण पहन कर कुटुंब सहित इस भोजनशाला में * भोजन करने आयेंगे, उन्हे राजा बहुत सा द्रव्य देकर सन्मान - करेगा.' इस से कई लोग सुंदर वस्त्र आभूषण पहन कर भोजन करने आने लगे... तब वह ब्राह्मणी भी अपनी पुत्री लक्ष्मी को रुक्मिणी के कंकणादि सब आभूषण पहना कर लोभ से शीघ्र ही उस P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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