________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 'आभूषणों सहित वह घर गई. तब उसे अपर माताने पूछा; "हे पुत्री ! तू इतने समय तक कहां रही ?' पुत्रीने जवाब दिया, 'मैं स्थान का नाम आदि कुछ भी नहीं जानती, लेकिन मैं इतना जानती हूँ कि जहा मैं रहती थी वह स्थान सूर्य के विमान सदृश तेजस्वी था. और मन को आनंद देनेवाला था, ऐसे घर में मैं सुखपूर्वक अब तक रहती थी. वहाँ दिव्य शरीर के रूप की शोभावाले, दोषरहित मनुष्य रहते हैं, और सुंदर वेशधारी तथा मनोहर हार तथा बाजुबंध आदि द्वारा शोभित है.' ब्राह्मणी भी आभूषणों के लोभसे बोली, “हे पुत्री ! तुम्न घर आई वह बहुत अच्छा किया, चिन्ता से कई स्थानों पर तेरी खोज को थी. आज मेरे सद्भाग्य से तू यहाँ आ गई है, उस ब्राह्मणीने विचार किया, 'मैं अपनी पुत्री लक्ष्मी के लिये छल कपट से सभी आभूपण इस से ले लूंगी.' थोडी देर के बाद कमला बोली, 'हे पुत्रो! यदि तेरे यह आभूषण आदि राजा देखेगा तो ले लेगा, ऐसा कह कर उस दुष्ट बुद्धिवालीने उस के सत्र आभूषण उतार कर ले लिये.. और अपनी पुत्री के लिये किसी गुप्त स्थान में रख दिये. . . . एक बार वहाँ का राजा गांव के बाहर सुंदर घोडों को लेकर क्रीडा करने गया था. वहाँ घोडे के पैर के खुर के आघात से रुक्मिणी का गिरा हुआ एक दिव्य कंकण प्रगट हुआ, और उसे राजाने देखा. राजाने उसे ले लिया और अपनी पट्टरानी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust