________________ विक्रम चरित्र प्रतिमा भंग करने से तथा गुरुजनों की अवहेलना करने से प्राणियों को दुर्गति तथा दुःख परंपरा प्राप्त होती है.' मेघवती बोली, 'मैंने आप की जो अवज्ञा की वह कृपा करके अब क्षमा करें.' अतः प्रसन्न हुए नारदने कहा, 'तुझे जो कुछ काम हो वह कहे, जिस से मैं वह शीघ्र ही कर दूंगा.' मेघवती बोली, 'मेरा पति मेरी सौत को शीघ्र ही छोड दे, ऐसा करे.' उसका ऐसा कहने पर 'तथास्तु' कहकर ऋषि मेघनाद के पास गये. और बोले, 'देवता लोगों को मनुष्य स्त्री के साथ भाग करना जरा भी योग्य नहीं है, उनके शरीर में रस, खून, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा आदि सात धातु होते हैं.' इत्यादि कई युक्तियों से नारदने-मेघनाद को रुक्मिणी से विमुख कर दिया. तब मेघनादने पूछा, 'इस स्त्री को कहा ' छोडना योग्य है ?' . नारद बोले, 'इस स्त्री को जिस पेड के नीचे से लाये थे * वहीं पर छोडना ठीक है.' नारद के ऐसा कहने पर मेघनादने उस स्त्री को शीघ्र ही उस पेड के नीचे ले जा कर आभूषणे सहित छोड दिया. फिर मेघनाद स्वर्ग में जा कर अपनी पूर्व प्रिया मेघवती के साथ रह कर सुखपूर्वक समय व्यतीत * करने लगा. मेघनाद रुक्मिणी को वहाँ छोड गया, उस के बाद वह . * वहाँसे उठ कर पिता के घरकी तरफ चली. रास्ते में अकस्मात * एक 'कंकण' कई पृथ्वी पर गिर पडा, अन्य सब दिव्य P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust