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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित __मैंने पहले एक समय आते हुए नारद का सन्मान नहीं किया था, अतः संभव है कि, उन्होंने मेरे लिये यह दुःखदायक अवसर उत्पन्न किया है. यदि मैं पुनः नारद का सन्मान करतो वह भोले भाले ऋषि पुनः ठीक कर देंगे जिस से मेरे पति निर तर मेरे ही वश में रहेंगे.' ___कुछ समय बाद एकदा नारद ऋषि पुनः स्वर्ग में आये, तब उसने आदर सहित स्वागत आदि करके उन्हें खुश किया, तब नारदने मेघवती से पूछा, 'पहले जब मैं आया था, तब तो तुमने मेरे सामने दृष्ठिपात भी नहीं किया, लेकिन आज तुम किस कारण से इतना आदरसन्मान ... करती हो?' मेघवतीने कहा, 'उस समय किसी काम में लगे रहने के कारण मैंने आप का आदर नहीं किया होगा. अतः मेरा - वह अपराध क्षमा करें और मुझ पर प्रसन्न हो.' नारद ALA ALPHITRAL बोले, पूज्यजनों की पूजा का उल्लंघन करने से इह लोक में तथा परलोक में भी प्राणी दुःखी होते है, कहा है, देवों को (नारद और मेघवती चित्र नं. 54) P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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