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________________ विक्रम चरित्र किया, और उसे स्वर्गलोक में ले जा कर अलग स्थान में रखा. मेघनादने नारद का बहुत सन्मान किया, उस के बाद नारद तप करने के लिये आकाश मार्ग से पृथ्वीतल पर आ उत्तरे. _ अब मेघनाद उस रुक्मिणी के साथ दिनरात निरंतर सुखभोग करने लगा, और अपनी पहली प्रिया मेघवती को भल ही गये. उधर मेघवतीने जब देखा कि आज कल बहुत समय से मेघनाद नहीं आते तो उसने अपनी सखी से बात की, 'आजकल वे इधर कभी भी नहीं आते. अत्तः कहां रहते है ? तुम इस बात की जांच करो.' तब सखीने मेघनाद की तलाश की, और उसे मनुष्य पत्नी के साथ देखा तो वह आ कर अपनी स्वामिनी से इस प्रकार बोली, 'हे स्वामिनी! तेरे पतिः / विषयक्रीडा में आसक्त हो कर मनुष्य स्त्री के साथ विमान में अन्यत्र रहते है.' यह सुन कर मेघवतीने अपने पति को बुलवाये तब भी वे नहीं आये, तब वह सोचने लगी, ‘निश्चय ही मुझ से नाराज हुए नारदने दूसरी स्त्री के साथ विवाह करवाया है. सच ही शास्त्र में कहा है-- ____ परस्पर कलह करवानेवाले, मनुष्यों को युद्ध आदि में मरवानेवाले और सावद्ययोग में प्रवृत्त होने पर भी नारद सिद्धपद को प्राप्त करते है, उस में एक शील के पालन का ही महात्म्य है. + . +कलिकारओ वि जणमारओ वि सावज्जजोगनिरओ वि; जनारो वि सिज्झइ तखलु सीलस्य माहप्प. / / स. 12/225 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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