________________ 22 / विक्रम चरित्र प्रयास किया लेकिन कहीं भी कोई ऐसी बडी कन्या न मिली, जिस से ब्राह्मण दुःखी हुआ. यह देख वह ब्राहमणी बोली, 'जो तुम्हारी इच्छा हो तो मैं तुम्हारी पत्नी बन जाऊँ.' ब्राहमण बोला, 'तू मेरी पत्नी बन जाय तो बहुत ही अच्छा हो, क्यों कि यदि रोगी की जो इच्छा हो और वही वैद्य खाने को दे, तो रोगी को बहुत आनंद होता है.' - तब ब्राहमणने कमला को अपने घर में रख लिया. उसने भी स्नान कराने और अन्नपानादि से ब्राह्मण को खुश खुश किया. नीति में कहा भी है, हाथी एक वर्ष में वशमें आता है, घोडा एक महिने में, लेकिन बी तो पुरुषको एक दिन में ही वश में कर लेती है.' कमलाने एक दिन अपने पति से कहा, 'अन्य जनों के बालक गायें चराने के लिये हमेशा बाहर जाते है, पर अपनी पुत्री नहीं जाती.' पत्नी के वचनों को मानकर देवशर्माने पुत्री को गायें चराने के लिये बाहर भेजा. वह कमला रुक्मिणी को चाहे जैसा वैसा कुछ भोजन देने लगी और कठोर वचने द्वारा उसे बहुत दुःख देने लगी. इस प्रकार अपर माता कमला के दुःखदायी वचनों को सहन करती हुई, और गायों को चराती हुई रुक्मिणी मन ही मन बहुत दुःखो होने लगी. कहा है वालक के लिये माता का मरना, युवावस्था में पत्नी का मरना और वृद्धावस्था में पुत्र की मृत्यु तीनों बडे दुःखदायी होते है. इस प्रकार खिन्न मनवाली रुक्मिणी हमेशं गायों . . को चराती थी. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust