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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित , यह सुन कर ब्राह्मणने कहा, 'मैं अब दूसरी पत्नी नहीं करना चाहता, क्यों कि कोई भी स्त्री पहले की प्रिया समान नहीं मिलेगी, फिर मेरी यह पुत्री भोजन आदि देकर मेरी भक्ति करती है, जिस से मैं अपनी पत्नी को भी भूल गया हूँ.' : कमल की कपटजाल. तब उस कमलाने सोचा, 'मैं कुछ ऐसा कर कि जिस से इस का पुत्री उपरसे प्रेम कम हो जाय.' ... अब वह कमला ब्राह्मणी कई बार मोका देख कर गुप्तरूप से रुक्मिणी के न जानते हुए रसोई में अधिक नमक डाल जाती, और पुनः चुपचाप अपने घर चली जाती. कभी कभी वह रसोई में कचरा भी डाल कर चली जाती, कडवी व खारी रसोई देख कर पिता पुत्री से कहता, 'हे पुत्री ! तूने रसोई कडवी क्यों बनाई ?' तब पुत्री उसे जवाब देती, 'पिताजी, मैंने रसोई कडवी नहीं बनाई.' इस प्रकार वह ब्राह्मण हमेशा ऐसे भोजन से दुःखी होने लगा. धीरे धीरे उस का पुत्री पर से स्नेह कम हो गया, फिर वह उस विधवा ब्राह्मणी के आगे जाकर कहने लगा, 'यह कन्या मुझे हमेशा कडवी रसोई खाने को देती हैं.' ... कमला बोली, 'मैंने तुम्हें पहले ही कहा था, पर तुमने माना नहीं.' तब ब्राह्मणने उसे कहा, 'तू मेरे लिये दूसरी पत्नी ढूढ कर ले आ.' तब कमलाने अन्य कन्या के लिये P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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