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________________ विक्रम चरित्र क्रमशः सूक्मिणी बड़ी होने लगी, घरकार्य करके, हमेशा यथा समय अन्नादि जिमाने से तथा भक्ति और विनयादि गुणों के कारण पिता को अपनी पुत्री पर असीम स्नेह रहा. देवशर्मा के पडोश में एक कमला नाम की विधवा ब्राह्मणी रहती थी, वह देवशर्मा को अपना पति करना चाहती थी. अतः उसे इस प्रकार कहने लगी, 'हे ब्राह्मण ! तुम्हारी प्रिया मर गई है, और तुम्हे स्वादिष्ट भोजन करने को चाहिये, यह तुम्हारी पुत्री छोटी है, और अच्छी तरह रसोई करना नहीं जानती. अतः किसी दूसरी स्त्री से तुम शादी कर लो. नई पत्नी करने से तुम्हे सुख प्राप्त होगा, अभी तुम्हारी उम्र कम है. अतः कोई भी ब्राहाण तुम्हें अपनी कन्या देगा.. बुढापा आने पर तुम्हें कोई भी अपनी पुत्री नहीं देगा. जब तुम्हारी पुत्री युवावस्था को प्राप्त करेगी, और तुम किसी वर के साथ विवाह कर दोगे, और वह अपने ससुराल चली जायगी, तब तुम्हारी दशा क्या होगी? मेरे शब्द आहे जाकर अत्यंत सुखकारी होंगे यह तुम्हें स्पष्ट जान लेना. कहा भी है स्त्रियों का भी हित, मित, और सुखकर वचन ग्राह्य होता है, और भाइयों का भी दुःखप्रद वचन त्याज्य होता है.x x हित मितं च सुखद वचो ग्राह्यं स्त्रियामपि, त्याज्य दुःखप्रदं वाक्य बान्धवानामपि तम / स. 12/190 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust 0
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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