________________ छासठवाँ-प्रकरण सज्जन-दुर्जन जाणीए, जब मुख बोले वाणी; सज्जन मुख अमृत झरे, दुर्जन विक्की खाणी. रुक्मिणी का कंकण .. अब विक्रमचरित्र महाराजा के सामने दूसरी चामरधारिणी ने सभा के समक्ष अमृततुल्यवाणी से विक्रमादित्य महाराजा के एक जीवन प्रसंग का वर्णन करना आरंभ किया. " एक बार महाराजा विक्रमादित्य की राजसभा में कोई पंडित आया, और उसने यह अपूर्व कथा सुनाई. . 'चम्पकपुर' नगर में 'चम्पक' राजा राज्य करता था. उस की स्त्रियों में उत्तम शीलवती 'चम्पका' नाम की पत्नी थी. उस नगर में 'देवशर्मा' नामका ब्राह्मण था. और उसकी 'प्रीतिमती' नामकी स्त्री थी. जिस प्रकार पूर्व दिशा में रोहिणी का जन्म होता है, उसी प्रकार उसने सुंदर रूपवाली कन्या को जन्म दिया. पति आदिने उसका 'रुक्मिणी' नाम रखा. वह धीरे धीरे बडी होने लगी, और उसके तुतलाते हुए शब्द मातापिता को. आनंद देने लगे. .. जब वह आठ वर्ष की हुई तो उस की माता प्रीतिमती दैवयोग से मृत्यु को प्राप्त हुई. देवशर्माने अपने अपनी पत्नीका मृत्युकार्य सभी संबन्धियों को बुलाकर विधिपूर्वक किया. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust