________________ ... विक्रम चरित्र - - उस के माता पिताने पुत्र विना अपना जीवन निरर्थक है, और उसकी पत्नीने भी पति बिना जीवन निर्थक है, विचार कर के जिस कुंड में वह गिरा था उसी कुंड में आकर स्वयं भी कुद पडे. यह सब वृक्ष की आड में छोपे हुए महाराजाने देखा तब उसने विचारा, 'उन चारों की मेरे निमित्त हत्या हुई है, मेरे जीने से क्या ?' अतः वे भी अग्निकुंड में कूदने के लिये तत्पर हुए, तब देवीने प्रकट होकर महाराजा को दोनों हाथों से पकड कर रोका, महाराजाने कहा, 'तुम कौन हो, जो मेरे इस कार्य में अन्तराय करती हो.' देवी वाली, 'मैं इस राज्य की अधिष्ठायिका हुँ.' हे राजन् ! कुंड में कूदने का साहस मत करे.' महाराजाने कहा, 'हे देवी! यदि तुम इन मनुष्यों को जीवित करोगी तो ही मैं जीवित रहूँगा. अन्यथा नहीं.' . तब देवीने थोडा पानी छांटा और क्षण मात्र में सब जीवित हो गये. तब महाराजा बोला, 'हे देवी! तुमने खूब इन्द्रजाल फैलाया.' तब देवी ने कहा, 'तुम्हारी तथा इन सब मनुष्यों की परीक्षा करने के लिये ही मैने यह जाल किया है.' उस से चमत्कृत हुआ, महाराजा आदि सब लोग देवी को नमस्कार करके घर आये. और गाव नगर आदि देकर सेवक का महाराजाने अधिक आदर किया. महाराजा विक्रमादित्य बोले, 'हे शय्या ! उन महाराजा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust