________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 615 . बिना योगिनियों का कार्य सिद्ध नहीं हो सकता, राजा और तुम दोनों ही बत्तीस लक्षणवाले उत्तम पुरुष हो.' तब वीरनारायण बोला, 'महाराजा तो समस्त राज्य का आधारभूत है. कहा है कि - जिस पुरुष द्वारा कुल का अथवा जगत का कल्याण हो या सब को सुख उत्पन्न हो, उस मनुष्य की अपने शरीर तथा द्रव्य से भी रक्षा करनी चाहिये, जैसे चक्र में मध्यभाग का तुम्बी टूट जाय तो उस पर आधार रखनेवाले आरे कभी नहीं रह सकते, इसी तरह कुल के अधिपति मुख्य मनुष्य बिना अन्य मनुष्य नहीं रह सकते. __आगम में भी कहा है-जिस पुरुष पर वंश आश्रित हो, उस पुरुष की आदरपूर्वक रक्षा करनी चाहिये. मैं उसी राजा का सेवक हूँ. और मेरे मरने से जगत को कुछ नुकशान नहीं होगा, अतः हे देवी! कुछ देर ठहरा मैं अपने शरीर को अग्नि में डालता हूँ.' इतना कह कर शीघ्र ही वह घर गया और अपने माता पिता को सारी हकीकत कह दी. और उन्होंने भी सहर्ष उसे अनुमति दे दी. अनुमति पाकर वह शीघ्र ही घर से रवाना होकर देवी के पास चला, और देवीके पास आकर पूछा, 'हे देवी ! अब मैं क्या करूं ?' देवीने कहा, 'स्नान कर के इस अग्निकुंड में कुद पडो.' देवी के कथनानुसार उसने अपने शरीर को अग्नि में डाल दिया. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust