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________________ 614 विक्रम चरित्र इस राज्य की अधिष्ठात्री देवी हूँ. आज 64 योगिनियों अपनी तृप्ति के लिये यहां के महाराजा को लाकर अग्नि के जलते हुए कुंड में डालनेवाली हैं. महाराजा के उसमें जलजाने पर राज्य सूना हो जायगा. अतः मैं निराधार और दुःखित बनूंगी. इस राजा के कोई साहसी सेवक नहीं है जो अपने शरीर का भोग देकर महाराजा की रक्षा करे.' वीरनारायण बोला, 'मैं ही महाराजा के सेवकों में मुख्य हूँ. हे देवी! मुझे महाराजा की रक्षा की विधि बतलाओ, जिस से मैं तुम्हारे कथनानुसार करूँ.' देवी बोली, 'वह काम किसी से भी करना शक्य नहीं है,' तब वीर बोला, 'मुझे बताओ, शक्य अशक्य का क्या प्रयोजन है ? क्यों किनीच पुरुष विघ्न के भय से काम का प्रारंभ ही नहीं करते, मध्यम पुरुष कार्य प्रारंभ करके भी विघ्न आने से बीच में ही रुक जाते. SANI है, लेकिन उत्तम पुरुष हजार प्रकार के विघ्न आने पर भी (वीरनारायण और देवी. चित्र. न. 52) प्रारंभ किये हुए काम को नहीं छोडते.' तब देवी बोली, 'हे वीर ! बत्तीस लक्षणवाले पुरुष / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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