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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित इस के बाद अग्निवैताल को शय्या में अधिष्ठित करके : विक्रम महाराजा बोले, 'हे शय्या ! तुम मेरी बात का जवाब दोगी ?" तब वह शय्या बोली, 'मैं तुम्हारी बातका हकारा : रूपी जवाब दूंगी.' विक्रमादित्य महाराजा उस राजकुमारी के सुनते हुए, इस प्रकार की कथा कहने लगे. विश्वरुप राजा की कथा . 'बेन्नाट नगर में 'विश्वरूप' नामक एक राजा था, उस के सूर नाम का एक सेवक था, उस सेवक को शीलवती कमला नाम की पत्नी व वीरनारायण नाम का पुत्र था. उस को भी पद्मावती नाम को विनयवती पत्नी थी. वीरनारायण को विशिष्ट प्रकार का सेवक जान कर खुश होकर महाराजाने एक लाख की आयवाला एक नगर उसे दे दिया, और उसे अपना अंगरक्षक बनाया. अतः वह रात को दरवाजे के बाहर तलवार लेकर महाराजा की रक्षा के लिये जागता रहता था. कहा है कि इशारे से तत्त्व को जाननेवाला, प्रिय वाणी बोलनेवाला, देखने में प्रिय लगनेवाला, एक बार कहने से समझनेवाला चतुर प्रतिहारी प्रशंसनीय है, . ... ___ एक बार रात में महाराजाने करुण स्वर से रुदन करती हुई स्त्री की आवाज सुन कर वीरनारायण को कारण जानने के लिये भेजा. वीरनारायणने स्मशान में जाकर रोती हुई स्त्रोको.. * रोने का कारण पूछा, उस समय महाराजा भी कौतुक से उसके पीछे पीछे आये थे, वे भी छीप कर उन दोनों के संवादों को सुनने लगे. वीरनारायण के कारण पूछने पर उस स्त्री ने कहा, 'मैं P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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