________________ विक्रम चरित्र करने के बाद पत्नियों के साथ उस सुन्दर उद्यान में भ्रमण करने लगे। इतने में बहुत गहरी छाया वाले एक बड़े ही सुन्दर आम के पेड़ को देखा और राजा उसकी प्रशंसा करते हुए कहने लगे- सोहग ऊपरि मंजरी, तू साहइ सहकार / अन्नि जि तरूअर तुड़ि कर इं, ते सव्वेपि गमार" ||26|| "कल्प वृक्ष के समान मीठे फलों के देने वाले हे आम्र वृक्ष ! तेरी मंजरियां सुन्दर सुशोभित हैं और वे मंजरिया मधुर फलों को उत्पन्न करने वाली हैं; तेरे पत्तों की श्रेणी अनुपम मंगल की देने वाली है, तेरी छाया सब प्राणियों को प्यारी लगती है, तेरा रूप बड़ा ही सुन्दर है, हे आम्र वृक्ष ! अधिक क्या कहूं-तेरा सारा ही अंग जगत के जीवों को अति उपकारक है, और जो कवि अन्यान्य वृक्षों के साथ तेरी तुलना करते हैं वे सब गंवार मुर्ख हैं-अर्थात धिक्कार के पात्र हैं।" मधु मंजरी छाया सुफल-तरुवर शुभद सहकार है। तरु अन्य से तुलना करे-वह ना. निराही गवाँर है।। इस तरह आम्र वृक्ष की अनेक प्रकार प्रशंसा करते हुए महाराजा रानियों के साथ उसी आम के पेड़ की शीतल छाया में बैठ गये / सुदर वस्त्रों तथा अलंकारों से सुशोभित अपनी रानियों को देखकर राजा मन में विचार करने लगे कि-"इस संसार में जो देवांगना के समान अलौकिक सुन्दर स्त्रियां मैंने प्राप्त की हैं, वैसी स्त्रियां संसार भर में अप्राप्य हैं, क्योंकि पृथ्वी में सर्वत्र कल्प P.P.AC. Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust