________________ साहित्य मी मुनि निरन्जनविजय संयोजित ranAnmM लताए नहीं मिलती हैं"। इस तरह राजा अपने मन ही मन गवे कर रहा था, ठीक उसी समय उस आम के पेड़ की डाली पर बैठा हुआ एक 'शुक' मनुष्य भाषा में बोल उठा:-" इस संसार में सब कोई प्राणी अपने मन माने गर्व में मस्त रहता है, इसमें क्या आश्चर्य है ? जैसे टिटिभि (टिटोडी एक पक्षी) जब वह सोती है तब अपने पांव आकाश की ओर करके सोती है, क्यों कि यदि आकाश गिर जाय तो सारे संसार के प्राणी दब जाय और उनका नाश हो जाय, इसी कारण सब प्राणियों को बचाने के लिये ही अपनी टांगें ऊंची करके सोती है / " ( यह भी अर्थ हो सकता है--"मेरे चरणों के भार से पृथ्वी कहीं टूट न जाय इस भय से टिटिभि पक्षी चरणों को ऊपर की ओर करके शयन करती है।) एक शुक (तोता) की बोधदायक वाणी सुनकर महाराजा अपने मन में इस प्रकार सोचने लगे कि-"इस शुक ने मुझे इस प्रकार गर्व करते देख, आज मुझे खूब लज्जित किया है। किन्तु यह बात कदापि नहीं हो सकती / पक्षी में इतनी जान कहाँ से आई / यह तो काकतालीय न्याय से अथवा अजाकृपाणि'न्याय से अकस्मात् वा मेरे मन के गर्व को जानकर बोला है। इस प्रकार वह महाराजा अपने मन ही मन अनेक प्रकार के तक-विर्तक कर रहा था। उस समय पुनः बह शुक मेढ़क और . P.P.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust