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________________ साहित्य प्रेमी मुनि निरन्जनविजयसंयोजित सारी प्रजा को आनन्द में रखने पर ही देवता लोग राजा पर . संतुष्ट-प्रसन्न होते है / एक दिन मृगध्वज राजा राज-सभा में विराजमान थे, उस समय विलासीजनों को आनन्द कराने वाली वसंतऋतु का समय था। उद्यान की वनराजी अति फैली हुई थी, जिससे उद्यान की शोभा में अनुपम अभिवृद्धि हुई थी, यह देख कर उद्यान-पालक ने पाकर महाराज के आगे रोमांचकारी वसंतऋतु का वर्णन किया हेमन्त शिशिरमें ठिठुर ठिठुर,जाड़ोंसे जीव है दुख पाता। तब ऋतु वसन्त उपकार लिये, प्राणी के कारण सुख लाता॥ वन वक्ष प्रफुल्लित हराभरा, फूलों से अतिशय लगी लता। मधुपान दान पाकर मधुकर,रंजित हो गान किया करता / / आमों की मोर महक उठी, कानों में कोकिल कूक पड़ा। उपवन की शोभा भी लखिये कहने को माली मूक खड़ा // और महाराज को उद्यान में क्रीड़ा करने पधारने की विनती की। इसलिये एक दिन मगध्वज महाराज अपनी रानियों को साथ लेकर उद्यान में आनन्द-विलास करने आये। ___ वहां आकर महाराजा ने अपनी रानियों के साथ उद्यानमें आई हुई वापिका-बावड़ियां में जाकर बहुत समय तक जल-क्रीड़ा-- * प्रजासु वृद्धिन पराज्यवृद्धये, प्रजासु धर्मो दुरितापहःप्रभोः / प्रजास्वनीति नृपधर्म कीर्ति हन्नृपाय तुष्यन्ति सुराःप्रजोत्सवै / / _Jun Gun Aaradhat Trust 26 // सर्ग - P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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