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________________ विक्रम चरित्र AmAhn. इसी क्षेत्र में 'क्षितिप्रतिष्टित' नामक नगर में 'मृगध्वज' नामक अत्यंत न्याय परायण एक राजा हुआ / जैसे कहा है कि-- “जो राजा यशस्वी है, तेजस्वी है, शरण में आये हुए प्राणियों के रक्षण करने में निपुण है, दुर्जनों का सतत शमन करने वाला है, अपने शत्रुसमूहों का नाश कर चुका है, प्रजा का सदा प्रेम से पालन करने वाला है, सदा दान मार्ग में सद् लक्ष्मी का व्यय करने वाला है, तथा अपनी उचित लक्ष्मी का भोग करने वाला और सब कार्य में विनय विवेक से व्यवहार करने वाला है, नीति-मार्ग का सदा पालन करने वाला है, स्वीकार की हुई प्रतिज्ञा को पूर्ण पालन करने वाला है, और सदा कृतज्ञ है, वही अखंड आज्ञा वाला राजा इस पृथ्वी-मंडल में अपने विशाल राज्यको फैलाता प्रसिद्ध करता है / और भी कहा है "प्रजा का अभ्युदय राजा की राज्य वृद्धि करने वाला होता है और प्रजा में धर्म का अस्तित्व राजा के पापों का नाश करने वाला होता है तथा प्रजा में अनीति का प्रचार होने से राजा के धर्म और कीर्ति दोनों का नाश होता है और अपनी " “यस्तेजस्वी यशस्वी शरणगत, जनत्राण कर्म प्रवीणः, शास्ता शश्वत् खलानां, क्षतरिपुनिवहःपालकश्च प्रजानाम् / दाता भोक्ता विवेक नयपथपथिकः सुपतिज्ञः कृतज्ञः, * प्राज्यं राजास राज्यं प्रथयति, पृथिवीमण्डलेऽखंडितानः, 25 स०८ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaraulein
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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