________________ / साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित - माता, पिता, पुत्री, पुत्र, मित्र आदि के वध आदि दुर्गति देनेवाले कौनसा पाप नहीं करते ? कहा है कि दुःख से भरे जानेवाले इस पेट के लिये मैंने क्या क्या किया ? किस किस की प्रार्थना न की, किसे किसे मस्तक नहीं नमाया ? और क्या क्या योग्य या अयोग्य कार्य न किया ?' - इस प्रकार खिन्न चित्तवाले उस ब्राह्मण को देख वह ब्राह्मणी बोली, 'हे अतिथि ब्राह्मण! आप भोजन कीजिये, मेरा पुत्र जिंदा है, निरर्थक चिंता न करें. भोजन करने के - बाद उस स्त्रीने घर में से कुछ चूर्ण लाकर अग्नि में डाल कर क्षणभर में पुत्र को जीवित किया, क्यों कि मंत्र तंत्र मणिचूर्ण महौषधि आदि वस्तुओं का जगत में इष्ठफलं देनेवाला अपूर्व प्रभाव होता है. . .... वह ब्राह्मण उस स्त्री के पास से थोडा चूर्ण मांग कर * ले आया, और जिस जगह कन्या को जलाया था, वहां की रक्षा लेकर उस में चूरण डाल कर उस गावित्री कन्या को जीवित किया, कन्या के साथ मरा हुआ ब्राह्मण भी उस के साथ जीवित हो गया, और इधर तीर्थ स्थान पर गया हुआ ब्राह्मण भी एकाएक वहाँ आ गया. उस समय रूपवती कन्या को जीवित देख कर पुनः इन चारों में पूर्ववत् झगडा होने लगा. तब विक्रम महाराजा बोले, 'हे दीप ! तुम कहो कि * मंत्रतंत्रमणिचूर्ण महौषध्यादिवस्तुनः ... अचिन्त्यो विद्यते लोके प्रभावोऽभीष्टदायकः // स. 12/78 / / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust