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________________ .604 विक्रम चरित्र जब ये चारों लड रहे थे उसी समय एकाएक साप के काटने से वह कन्या क्षणभर में ही मर गई. इस से इस विवाद का बंत आया. . . उन चारों में से एक वर उस के साथ चिता में जल कर मर गया, दूसरा शीघ्र ही उसकी हड्डिया को लेकर : तीर्थ में डालने के लिये चला, तीसरा वर झोपडी बांध कर वहीं स्मशान में रहने लगा, और शिक्षा लाकर उसे पिंड देकर * उस बचे अन्न से निर्वाह करने लगा, चौथा वर पृथ्वी पर ... इधर उधर भटकने लगा, और घूमते घूमते वसंत नगर में आ पहुँचा... .., . यहाँ मुकुन्द नामक ब्राह्मण की पत्नीने उसे भोजन के लिये निमंत्रण दिया. जब वह भोजन करने लगा तो उस समय ब्राह्मणी का पुत्र रोने-चिल्लाने लगा, उसे भोजन परोसने , में विघ्न डालते देखा. उस से माताने एकाएक उस पुत्र को . अग्नि में डाल कर उस ब्राह्मण को भोजन परेसा. यह देख कर उस ब्राह्मण वरने सोचा, 'पहले तो मुझे एक कन्या की हत्या लगी है, और अभी पुनः मेरे कारण से इस बालक की मृत्यु हुई, अर्थात् उसे बालहत्या निरर्थक ही लगी. निश्चय ही मेरी नरक गति है।गी. धिक्कार हा मेरे जीवन को, और पृथ्वी भ्रमण करने को भी धिक्कार हो, तथा बालहत्या द्वारा उदरपूर्ति करानेवाले इस भोजन को भी धिक्कार हो. स्वार्थी जीव इस लोक में Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S..
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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