________________ विक्रम चरित्र देवियों के हैं." तब उन्होने उस पुतलियों से पूछा, "हे पुतलियों! इस सिंहासन की हम्हें क्या व्यवस्था करनी चाहिये ?" तब पुतलियोंने कहा, “अब इस सिंहासन को भूमि में गाड़ दो.” सिंहासन के अधिष्ठाता के वचन की महत्ता समझ कर उन मांत्रियोंने उस सिंहासन को पुतलिया सहित जमीन में भूमिगृह-तलघर कर उस में गाड़ दिया. उस के बाद मांत्रियोंने राजा विक्रमचरित्र को अन्य बडे मनोहर सिंहासन पर बिठाया, और सारे नगर में बडा उत्सव मनाया. नये महाराजा को नमस्कार कर के सभी नगरजन व मंत्रीगण आदि खुश हुए. उस समय विक्रमादित्य की बहनने आकर अपने भतिजा को अक्षत आदि सामग्री से बधाई देती हुई हर्षित हो कर इस प्रकार मंगल उच्चारण किया, “हे विक्रमचरित्र ! तुम धैर्य, उदारता, गंभिरता, शौर्य आदि उत्तम गुणों से महाराजा "विक्रमादित्य के समान विभूषित हो कर चिरकाल तक राज्य करो." उपरोक्त आशीर्वादात्मक मगंल शब्द सुन कर सिहासन पर की चारों चामरधारिणी हँस पडी, तब विक्रमचरित्रने उन से पूछा, “तुम क्यों हँसती हों ?" तब पहली चामरधारिणी बोली, "महाराजा विक्रमादित्य का एक एक जीवन प्रसंग इतना अद्भुत था कि उस का वर्णन करना भी शक्य नहीं हैं, तो आप उन के समान कैसे हो सकते है ?" महाराजा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust