________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित तपागच्छीय-नानाग्रंथ रचयिता कृष्ण सरस्वती बिरुद्धारक-. परम पूज्य-आचार्य श्री मुनिसुंदरसूरीश्वर शिष्य पंडितवर्य __श्री शुभशीलगणि विरचते विक्रमादित्य चरित्रे श्री विक्रमादित्य स्वर्गगमनो नामैकादशः सर्ग समाप्तः नानातीर्थीद्धारक-आबालब्रह्मचारि-शासनसम्राट् श्रीमद् विजयनेमिः सूरीश्वर शिष्य कविरत्न शास्त्रविशारद-पीयूषपाणि-जैनाचार्य श्रीमद् विजयामृतसूरीश्वरस्य तृतीयशिष्यः वैयावच्चकरणदक्ष मुनिवर्य श्री खान्तिविजयस्तस्य शिष्य मुनि निरंजनविजयेन कृतो विक्रमचरितस्य हिन्दी भाषायां . भावानुवादःतस्य च एकादशः सर्ग समाप्तः कर्म कभी नहीं छपते हैतारा की ज्योतमें चंद्र छूपे नहि, सूर्य छूपे नहि बादल छायो,, रण चडया रजपूत छूपे नदि, दाता छूपे नहि घर मांगन आयो.. चंच नारीको नैन छूपे नहि, प्रीत छूपे नहि पीढ देखायो कवि गंन कहे सुन शाह अकबर, कर्म छुपे नहि भभूत लगायो.. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust